कालू महरा का जीवन परिचय | Kalu Singh Mahara ka jeevan parichay | कालू सिंह महरा की लघु जीवनी हिंदी में |
कालू महरा का जीवन परिचय | Kalu Singh Mahara ka jeevan parichay | कालू सिंह महरा की लघु जीवनी हिंदी में |
नाम: कालू सिंह महरा
जन्म: 1831 ई.
मृत्यु: 1906 ई.
स्थान: थुआमहरा, चम्पावत, उत्तराखंड
प्रसिद्ध: भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
स्थापित संगठन: 1857 'क्रांतिवीर संगठन'
👉उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी
कालू सिंह महरा का जीवन परिचय।
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी कालू सिंह महरा का जन्म चम्पावत जिले के लोहाघाट के समीप थुआमहरा गांव में 1831 में हुआ था। कालू सिंह महरा ने अपने युवा अवस्था में ही अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू कर दी थी। इसके पीछे मुख्य कारण रूहेला के नबाव खानबहादुर खान, टिहरी नरेश और अवध नरेश द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के लिए पूर्ण सहयोग करने का वायदा था। इसके बाद कालू माहरा ने चौड़ापित्ता के बोरा, रैघों के बैडवाल, रौलमेल के लडवाल, चकोट के क्वाल, धौनी, मौनी, करायत, देव, बोरा, फत्र्याल आदि लोगों के साथ बगावत शुरू कर दी और इसकी जिम्मेदारी कालू महरा को दे दी गई। पहला आक्रमण लोहाघाट के चांदमारी में स्थिति अंग्रेजों की बैरेंकों पर किया गया। आक्रमण के कारण अंग्रेज वहां से भाग खड़े हुए और आजादी के लिए इन क्रांतिकारीयों ने बैरोंकों को आग के हवाले कर दिया।
कालू महरा को उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के नाम से जाना जाता है। कालू महरा ने ही अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में 'क्रांतिवीर संगठन' का निर्माण किया था। कालू सिंह महरा 1857 के प्रथम भारतीय विद्रोह के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और कुमाऊँनी नेता थे। कालू सिंह महरा कुमाऊं की बिसुंग पट्टी के ठाकुर थे । जिसे अब कर्णकरायत के नाम से जाना जाता है। देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय रहते रहते इन्होनें वर्ष 1906 में अलविदा हो गए ।
वर्ष 2010 में तत्कालीन डीएम की मौजूदगी में लोहाघाट चौराहे का नामकरण उनके नाम पर किया गया। कालू सिंह महरा को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में एक नायक के रूप में सम्मानित किया जाता है। 2009 में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में इस स्वतंत्रता सेनानी की प्रतिमा स्थापित की गई।
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