आचार्य चाणक्य 40 नियम | चाणक्य नीति हिंदी में
चाणक्य की कूटनीति तथा राजनीति विचार
1 उच्च विचार करने वाले तथा बात सुनने वाले मनुष्य को ही राजा अपना मंत्री बनाए ।
2 समस्त प्रकार से गोपनीय विचारों / सलाहों की रक्षा की जानी चाहिए।
3 योजना-रूपी सम्पदा से राज्य की वृद्धि होती हैं।
4 उचित सलाह रूपी नेत्रो से राजा शत्रु की कमजोरियों को देखता है।
5 स्वराष्ट्रनीति व विदेश नीति व्यवस्था का अंग है।
6 जनपद के लिए गांव का त्याग कर देना चाहिए।
7 गांव के लिए परिवार का त्याग कर देना चाहिए।
8 पड़ोसी देश के गुप्तचर पर हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
9 निर्बल राजा बलवाल राजा का आश्रय लें।
10 जिस प्रकार अग्नि का आश्रय लिया जाता है,वैसे ही राजा का भी आश्रय ले।
11 राजा के विपरित आचरण कदापि न करें ।
12 इंद्रियों के वशीभूत रहने वाला राजा चतुरंगिनी सेना होने पर भी जल्द ही नष्ट हो जाता है।
13 कठोर सजा देने वाले राजा से प्रजा नफरत करती है।
14 सभा के मध्य जो दूसरे का दोष दिखाता है; वह अपने ही दोषों को प्रकट करता है।
15 राजा के लिए आरोप भरे शब्द नही कहने चाहिए।
16 राजा अपनी वीरता से धनी होते है।
17 राज्य की समृद्धि धन से सम्भव है।
18 इंद्रियों पर विजय हासिल करने से राज्य की उन्नति है।
19 सत्य ज्ञान से राजा स्वयं को योग्य बनाए ।
20 अपने कर्त्तव्यो का जाता राजा ही इंद्रियजीत होता है।
21 राजा के सम्पन्न होने से प्रजा भी सम्पन्न हो जाती है।
22 सेवको के दुःख-दर्द को समझने वाला ही सेवा योग्य है।
23 महान राजा भी यदि निर्धन हो तो लोक सम्मान नहीं प्राप्त करता ।
24 निर्बल राजा का भी अपमान नही करना चाहिए।
25 राजा की आय की प्राप्ति दण्डनीति से होती है।
26 नीति शास्त्र का अनुसरण करना ही राजा की योग्यता है।
27 प्रतिदिन सीमा-संघर्ष करने वाले देश के शत्रु बन जाते है।
28 निर्बल राजा शीघ्र सन्धि कर ले।
29 शक्तिशाली से युध्द करना हाथियों की सेना से पैदल सेना का लड़ना है।
30 शक्तिशाली राजा अप्राप्त को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
31 धन से संतुष्ट राजा से लक्ष्मी दूर चली जाती है।
32 दण्डनीति का उचित प्रयोग करने से प्रजा की रक्षा होती है।
34 न्याय व्यवस्था राजा को सम्पत्तिवान बनाता है।
35 दंडनीति प्रयोग न करने से मंत्रियों में भी कमियां आ जाती है।
36 दंड विधान न लगाने पर गलत कार्यों में वृद्धि हो जाती है।
37 प्रजा सम्पन्न हो तो राजा के बगैर भी राज्य चलता है।
38 प्रजा का क्रोध समस्त क्रोधो से भयंकर होता है।
39 दुराचारी राजा के होने से राजा का न होना ही सही है।
आचार्य चाणक्य 40 नियम |
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