प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक | विट्ठल रामजी शिन्दे जीवन परिचय | Biography of Vitthal Ramji Shind

 


प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक | विट्ठल रामजी शिन्दे जीवन परिचय | Biography of Vitthal Ramji Shind

नाम: विट्ठल रामजी शिंदे

पुरानाम: महर्षी विठ्ठल रामजी शिंदे

 जन्म: 23 अप्रैल,1873 ई.

स्थान: जामखंडी, कर्नाटक

मृत्यु: 2 जनवरी,1944 ई.

पिता: रामजी शिंदे, 

माता: यमुनाबाई

पत्नि: रुक्मिणी

शिक्षा: मैट्रिक, बी.ए., एल.एल.बी 

विद्यालय: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, फर्ग्यूसन कॉलेज,

 व्यवसाय: सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सुधारक

पुस्तकें: भारतीय अस्पृष्यतेचा प्रश्न

1898 : प्रार्थना समाज में शामिल हुए। और अनुयायी बन गए।

1905 : अछूतों के बच्चों के लिए एक रात्रि विद्यालय की स्थापना की (मीथगंजपेठ पुणे )

1906: बंबई में दलित वर्ग मिशन की स्थापना की।

 1907: सोमवंशीय मित्र समाज की स्थापना की।

1910 में 'प्रार्थना समाज' को पूरी तरह छोड़ दिया।

1917 : को अखिल भारतीय निराश्रित अस्पृश्यता निवारक संघ की स्थापना की।

1933: "भारतीय अस्पृश्यतेचा प्रश्न" पुस्तक प्रकाशित हुई।

विट्ठल रामजी शिंदे का जीवन परिचय। 

महर्षि विट्ठल रामजी शिन्दे महाराष्ट्र के सबसे बड़े समाजसुधारकों में से थे। उनका सबसे बड़ा योगदान अस्पृश्यता को मिटाना तथा दलित वर्ग को बराबरी पर लाना था।

विट्ठल रामजी शिंदे का जन्म 23 अप्रॅल सन 1873 को जामखंडी, कर्नाटक में हुआ था। इनके पिता रामजी शिंदे, जामखंडी स्टेट में नौकरी किया करते थे। 

विट्ठल रामजी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में हुआ। तब उनकी पत्नी की उम्र मुश्किल से एक वर्ष रही होगी। मेट्रिक उतीर्ण करने के बाद विट्ठल रामजी शिंदे ने पूना आकर फर्ग्युशन कालेज से बी ए और सन 1898 में एल एल बी किया। इस दौरान उन्हें पूना के प्रसिद्धवकील  गंगाराम भाऊ म्हस्के और बडौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ से आर्थिक सहायता मिली थी। 

शुरू में विट्ठल रामजी शिंदेप्रार्थना समाजके सम्पर्क में आये थे। प्रार्थना समाज द्वारा प्राप्त आर्थिक सहायता से वे उच्च अध्ययन हेतु इंग्लैण्ड, इस शर्त के साथ कि वापस आकर वे संस्था का काम करेंगे। इंग्लैण्ड स्थित आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मानचेस्टर कालेज में शिंदे ने विभिन्न धर्मों, खास कर बौद्ध धर्म और पालि भाषा का गहन अध्ययन किया। सन 1903 मेंइंग्लैण्ड से लौटने के बाद मुम्बई में उन्होंने 'यंगथीस्टयूनियन' नामक संस्था स्थापित की। संस्था के सदस्यों के लिए उन्होंने शर्तें रखी थी कि वे मूर्तिपूजा और जाति पांति की घृणा में विश्वास कभी नहीं करेंगे। वे सन 1913 तक प्रार्थना समाज में रहे। वर्ष 1905 में पूना के मिठनगंज पेठ में अछूतों के लिए रात्रि स्कूल खोला। इसी प्रकार 14 मार्च 1907 को अछूत जातियों के सामाजिक धार्मिक सुधार के निमित्त 'सोमवंशीय मित्र समाज' की स्थापना की। प्रार्थना समाजकी ओर से 18 अक्टूबरा 1906 को 'डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन' की स्थापना की गयी थी। विट्ठल रामजी शिंदे इसके महासचिव थे। और सन 1917 को उन्होंने अखिल भारतीय निराश्रित अस्पृश्यता निवारक संघकी स्थापना की।

सन 1916 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 'लखनऊ पेक्ट' को भारी समर्थन दिया।

सन 1924 के दौर में शिंदे ने केरल के  वैकम मन्दिर प्रवेश आन्दोलन में भाग लिया था। परन्तु उनका यह कार्य उनके 'ब्राह्म समाज' के लोगों को पसंद नहीं आया। निराश हो कर शिंदे पूना लौट आये। शिंदे का ध्यान अब बौद्ध धर्म की तरफ गया। उन्होंने 'धम्मपद' आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। इसी अध्ययन के सिलसिले में सन 1927 में उन्होंने बर्मा की यात्रा की थी। 1933 में उनकी पुस्तक भारतीय अस्पृष्यतेचा प्रश्न ("भारत का अस्पृश्यता प्रश्न") प्रकाशित हुई। विट्ठल रामजी शिंदे भारत के महाराष्ट्र में एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे । वह भारत की आज़ादी से पहले के  उदारवादी विचारकों और सुधारवादियों में प्रमुख थे । उन्हें एक समाज सुधारक और भारतीय समाज में अधिक समानता के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता के रूप में पहचाना जाता है। उन्हें विशेष रूप से 'अस्पृश्यता' की प्रथा का विरोध करने और दलितों जैसे 'अछूतों' के लिए समर्थन और शिक्षा की वकालत करने के लिए जाना जाता है ।

विट्ठल शिंदे का अन्तिम समय निराशापूर्ण था। समाज सुधार के प्रति उनके मन में जो पीड़ा थी और जिसके लिए वे ता-उम्र अपने लोगों से संघर्ष करते रहे थे। इसी संत्रास में वे 2 जनवरी 1944 को इनका मृत्यु हो गया।


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