महर्षी धोंडो केशव कर्वे की जीवनी | Dhondo Keshav Karve Biography In Hindi | भारत रत्न |

महर्षी धोंडो केशव कर्वे की जीवनी | Dhondo Keshav Karve Biography In Hindi | भारत रत्न |

नाम: धोंडो केशव कर्वे,

 उपनाम: महारानी कर्वे 

जन्म: 18अप्रैल,1858 ई.

स्थान: रत्नागिरी, महाराष्ट्र 

मृत्यु: 9 नवंबर,1962 ई.

स्थान: पुणे, भारत

माता: लक्ष्मीबाई, पिता: केशव पंत

पत्नी: राधाबाई और गोदुबाई

 बच्चे: रघुनाथ, भास्कर, दिनकर, शंकर

शिक्षा: स्नातक (गणित)

विद्यालय: एलफिंस्टन कॉलेज, मुम्बई

प्रसिद्धि: समाज सुधारक, शिक्षक शास्त्री

पुरस्कार: भारत रत्न (1958), पद्म विभूषण (1955)

रचनाएँ: मराठी में आत्मावृत्ता (1928), और अंग्रेजी में लुकिंग बैक (1936)

धोंडो केशव कर्वे का जीवन परिचय। 

महर्षि कर्वे का जन्म 18 अप्रॅल, 1858 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि ज़िले के 'मुरूड़' नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री केशव पंत था। और माता का नाम मॉ लक्ष्मीबाई था। इनकी आरंभिक शिक्षा मुरुड में हुई। पश्चात् सतारा में दो ढाई वर्ष अध्ययन करके मुंबई के राबर्ट मनी स्कूल में दाखिल हुए।1884 ईस्वी में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से गणित विषय लेकर बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी.ए. करने के बाद वे एलफिंस्टन स्कूल में अध्यापक हो गए।

महर्षि कर्वे का विवाह 15 वर्ष की आयु में ही हो गया था। और बी.ए. पास करने तक उनके पुत्र की अवस्था ढाई वर्ष हो चुकी थी। अत: खर्च चलाने के लिए स्कूल की नौकरी के साथ-साथ लड़कियों के दो हाईस्कूलों में वे अंशकालिक काम भी करते थे। भारत में हिंदू विधवाओं की दयनीय और शोचनीय दशा देखकर महर्षि कर्वे, मुंबई में पढ़ते समय ही। विधवा विवाह के समर्थक बन गए थे। उनकी पत्नी का देहांत भी उनके मुंबई प्रवास के बीच हो चुका था। अत: 11 मार्च 1893 ईस्वी को उन्होंने गोड़बाई नामक विधवा से विवाह कर, विधवा विवाह संबंधी प्रतिबंध को चुनौती दी। महर्षि कर्वे ने "विधवा विवाह संघ" की स्थापना की। अत: 1896 में उन्होंने "अनाथ बालिकाश्रम एसोसिएशन" बनाया और जून, 1900 में पूना के पास हिंगणे नामक स्थान में एक छोटा सा मकान बनाकर "अनाथ बालिकाश्रम" की स्थापना की गई। 4 मार्च 1907 को उन्होंने "महिला विद्यालय" की स्थापना की जिसका अपना भवन 1911 तक बनकर तैयार हो गया।

महर्षि कर्वे के अथक प्रयासों से, पूना में महिला विश्वविद्यालय की नींव पड़ी, जिसका पहला कालेज "महिला पाठशाला" के नाम से 16 जुलाई 1916 ई. को खुला।

महर्षि डॉ॰ धोंडो केशव कर्वे  भारत के प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। उन्होने महिला शिक्षा और विधवा विवाह मे महत्त्वपूर्ण योगदान किया। उन्होने अपना जीवन महिला उत्थान को समर्पित कर दिया। उनके द्वारा मुम्बई में स्थापित एस एन डी टी महिला विश्वविद्यालय भारत का प्रथम महिला विश्वविद्यालय है। वे वर्ष 1891 से वर्ष 1914 तक पुणे के फरगुस्सन कालेज में गणित के अध्यापक थे। 

सन् 1936 ईस्वी में गांवों में शिक्षा के प्रचार के लिए महर्षि कर्वे ने "महाराष्ट्र ग्राम प्राथमिक शिक्षा समिति" की स्थापना की। जिसने धीरे धीरे विभिन्न गाँवों में 40 प्राथमिक विद्यालय खोले। स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद यह कार्य राज्य सरकार ने सँभाल लिया। सन् 1915 में महर्षि कर्वे द्वारा मराठी भाषा में रचित "आत्मचरित" नामक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। 1942 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉ॰ लिट्. की उपाधि प्रदान की। 1954 में उनके अपने महिला विश्वविद्यालय ने उन्हें एल.एल.डी. की उपाधि दी। 1955 में भारत सरकार ने उन्हें "पद्मविभूषण" से अलंकृत किया। और 100 वर्ष की आयु पूरी हो जाने पर, 1957 में मुंबई विश्वविद्यालय ने उन्हें एल.एल.डी. की उपाधि से सम्मानित किया। 1958 में भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान "भारतरत्न" से विभूषित किया। भारत सरकार के डाक तार विभाग ने इनके सम्मान में एक डाक टिकट निकालकर इनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की थी।

कर्वे ने दो आत्मकथात्मक रचनाएँ लिखीं: मराठी में आत्मावृत्ता (1928), और अंग्रेजी में लुकिंग बैक (1936)।

उन्होंने 105 वर्ष के दीर्घ आयु प्राप्त की और अंत तक वह किसी न किसी रूप में मानव सेवा के कार्यों में लगे रहे। 9 नवंबर सन् 1962 को इस महान् आत्मा ने इस लोक से विदा ली।

महर्षी धोंडो केशव कर्वे की जीवनी | Dhondo Keshav Karve Biography In Hindi | भारत रत्न |
महर्षी धोंडो केशव कर्वे 



 

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