आचार्य विनोबा भावे ka jeevan parichay | रचनाएं | Biography of Vinoba Bhave in Hindi |


 आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय। 

विनोबा भावे एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और भूदान आंदोलन के प्रणेता थे। जिनका मूल नाम विनायक नारहरी भावे था। आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर 1895 ईस्वी को रायगढ़, ब्रिटिश भारत में हुआ। और इनके पिता जी का नाम विनायक नरहरि शंभू राव और माता जी का नाम रुक्मिणी देवी था। ये चार भाई बहन थे जिनमे विनायक सबसे बड़े थे। इनकी माताजी धार्मिक चीजों से बहुत प्रभावित इसलिए इनको श्रीमद् भागवत गीता बचपन में ही पढ़ने का मौका मिला।

1915 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। पिता ने कहा। ‘फ्रेंच पढ़ो.’ मां बोलीं ‘ब्राह्मण का बेटा संस्कृत न पढ़े, यह कैसे संभव है! विनोबा ने उन दोनों का मन रखा। इंटर में फ्रेंच को चुना। संस्कृत का अध्ययन उन्होंने निजी स्तर पर जारी रखा।

1916 में, महात्मा गांधी द्वारा लिखित एक अखबार के टुकड़े को पढ़ने के बाद। भावे ने इंटरमीडिएट परीक्षा में बैठने के लिए बॉम्बे जाते समय अपने स्कूल और कॉलेज के प्रमाणपत्रों को आग में फेंक दिया। गांधी ने भावे को अहमदाबाद के कोचरब आश्रम में एक व्यक्तिगत बैठक के लिए आने की सलाह दी । 

1920 में वर्धा आश्रम के संचालन का कार्य उन्होंने अपने कन्धों पर ले लिया । गांधीजी की तरह सत्य, अहिंसा तथा सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेज विरोधी आन्दोलनों का नेतृत्व किया ।

विनायक नरहरि भावे जिन्हें विनोबा भावे के नाम से भी जाना जाता है। अहिंसा और मानवाधिकारोंके एक भारतीय समर्थक थे।अक्सर उन्हें आचार्य कहा जाता है। उन्हें  भूदान आंदोलन के लिए जाना जाता है । उन्हें भारत का राष्ट्रीय शिक्षक और  महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है । वह एक प्रख्यात दार्शनिक थे।1920 और 1930 के दशक में भावे कई बार जेल गए और  1940 में उन्हें पाँच साल के लिए जेल जाना पड़ा। बीसियों भाषाओं के ज्ञाता विनोबा जी देवनागरी को विश्व लिपि के रूप में देखना चाहते थे। भारत के लिये वे देवनागरी को सम्पर्क लिपि के रूप में विकसित करने के पक्षधर थे। वे कहते थे कि मैं नहीं कहता कि नागरी ही चले, बल्कि मैं चाहता हूं कि नागरी भी चले। उनके ही विचारों से प्रेरणा लेकर नागरी लिपि संगम की स्थापना की गयी है जो भारत के अन्दर और भारत के बाहर देवनागरी को उपयोग और प्रसार करने के लिये कार्य करती है। भारत के एक सर्वाधिक जाने माने समाज सुधारक एवं 'भूदान यज्ञ' नामक आन्दोलन के संस्थापक थे। इनकी समस्‍त ज़िंदगी साधु संयासियों जैसी रही, इसी कारणवश ये एक संत के तौर पर प्रख्‍यात हुए। विनोबा को 1958 में प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।

इनका सामाजिक सशक्तिकरण के प्रति बहुत लगाव था और उन्होंने 'जय जगत' का नारा दिया था। इनकी मृत्यु 15 नवम्बर सन् 1982 में वर्द्धा, महाराष्ट्र में हुई। उस समय भारत की तात्कालिक प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी एक सोवियत नेता लियोनिद के अंतिम संस्कार के लिए मास्को जाने वाली थीं। लेकिन आचार्य की मृत्यु की खबर पाकर उन्होंने वहाँ जाना रद्द किया। और आचार्य के अंतिम संस्कार में शामिल हुईं।इनकी रचनाएं: गांधी पर विनोबा, अंतरंग और परम, शिक्षा पर विचार, गीता पर बातचीत, आदि है।




आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय | Acharya Vinoba bhave biography in hindi |


पूरानाम: विनायक नरहरि भावे

अन्यनाम: आचार्य, विनोबा भावे

जन्म: 11 सितम्बर 1895 ई.

स्थान: पेन,रायगढ़,भारत

मृत्यु: 15 नवम्बर,1982 ई.

स्थान: वर्धा, महाराष्ट्र

पिता: नरहरि शंभू राव,

माता: रुक्मिणी देवी

शिक्षा: महाराज सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय

भाषा: मराठी, संस्कृत, हिंदी, अरबी, फ़ारसी, गुजराती, बंगला, अंग्रेज़ी, फ्रेंच आदि

धर्म: हिन्दू, जाति: चित्पावन ब्राह्मण

प्रसिद्धि: भूदान आन्दोलन, कर्मक्षेत्र: समाज सुधारक, लेखक, चिन्तक, स्वतंत्रता सेनानी

आंदोलन: 'भूदान यज्ञ'नामक आन्दोलन के संस्थापक थे

पुरस्कार: भारत रत्न1983, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार1958,

रचनाएं: गांधी पर विनोबा, अंतरंग और परम, शिक्षा पर विचार, गीता पर बातचीत, आदि

जेल: 1920और1930 के दशक में भावे कई बार जेल गए

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आचार्य विनोबा भावे की छवि



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