महावीर स्वामी का जीवन परिचय | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर | Biography of mahavir swami

 


महावीर स्वामी का जीवन परिचय | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर | Biography of mahavir swami

अन्यनाम: वर्धमान, आदिनाथ, अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, अतिवीर, नाम: महावीर स्वामी

जन्म: 599 या 540 ई. पू.

स्थान: कुंडग्राम (वैशाली)

मृत्यु: 527 या 468 ई.पू.

स्थान: पावापुरी, बिहार

पिता: सिद्धार्थ, 

माता: त्रिशला, 

पत्नी: यशोदा, 

पुत्री: प्रियदर्शना,

गुरु: इंद्रभुति गौतम, 

शिष्य: मक्खलिपुत्र गोशाल, 

जाति: क्षत्रिय, 

धर्म: जैन धर्म,

 प्रतीक: सिंह, 

मंत्र: श्री महावीराय नमः, 

गृहत्याग: 30 वर्ष की आयु में

ग्रंथ: आगम ग्रंथ, कल्पसूत्र,

सिद्धांत: अहिंसा,सत्य,अपरिग्रह,अचौर्य, ब्रह्मचर्य

प्रथम उपदेश: राजगृह में बराकर नदी तट पर बिपुलाचल पहाड़ी पर

ज्ञानप्राप्ति: 12 वर्ष की घोर तपस्या के बाद 42 वर्ष की आयु में रिजुपालिका नदी के तट पर जम्भिकाग्राम में एक साल के वृक्ष के नीचे

👉जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर

महावीर का जीवन परिचय। 

महावीर या वर्धमान महावीर जैन धर्म  के प्रवर्तक  भगवान ऋषभनाथ की परम्परा में 24वें जैन तीर्थंकर थे। 

महावीर स्वामी का जीवन काल 599। ईसा पूर्व से 527। ईसा पूर्व तक माना जाता है। इनका जन्म वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। उनकी माता का नाम त्रिशला और पिता का नाम सिद्धार्थ था। बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था। लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था। जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है।

दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे। क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था। भगवान महावीर तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष  की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और  चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को  दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है। जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी  काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे। और  ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात पात का भेद भाव जिस युग में बढ़ गया। उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया।उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए। जो है अहिंसा, सत्य,  अपरिग्रह, अचौर्य ,ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक सी हैं। इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का 'जियो और जीने दो' का सिद्धान्त है। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया।

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