अच्युत पटवर्धन का जीवन परिचय। Biography of Achyut Patwardhan


 अच्युत पटवर्धन का जीवन परिचय। Biography of Achyut Patwardhan


नाम: अच्युत पटवर्धन

उपनाम: "सतारा का शेर"

जन्म: 5 फरवरी 1905 ई. अहमदनगर, भारत

मृत्यु: 5 अगस्त 1992 ई. वाराणसी, भारत

पिता: हरि केशव पटवर्धन, 

शिक्षा: बी.ए, एम.ए (अर्थशास्त्र)

विद्यालय: बनारस के सेंट्रल हिंदू कॉलेज

संगठन: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय सोशलिस्ट पार्टी

आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन,

अच्युत पटवर्धन का जीवन परिचय। 

अच्युत सीताराम पटवर्धन का जन्म 05 फरवरी सन् 1905 में अहमदनगर,में हुआ था। और इनकी मृत्यु 5 अगस्त, 1992,  वाराणसी, में हुआ था। इनके पिता 'श्री हरि केशव पटवर्धन' अहमदनगर में वकील थे। अच्युत पटवर्धन की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा अहमदनगर में ही हुई। इसके बाद उन्होने सेंट्रल हिन्दू कॉलेज, बनारस से बी.ए एवं एम ए उतीर्ण किया। उनका विषय 'अर्थशास्त्र' था। और उन्होने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। अच्युत का अपना परिवार तथा जिस परिवार ने उन्हें पाला-पोषा वह परिवार, दोनों ही थियोसोफिस्ट थे। अतः उन्हें उस काॅलेज में शिक्षा के लिए भेजा गया था जिसकी स्थापना श्रीमती एनी बेसेन्ट ने किया था। वह कॉलेज के प्राचार्य डॉ जीएस अरुनडाले, डॉ एनी बेसेन्ट तथा प्रोफेसर तेलंग के सम्पर्क में रहे। उनके प्रभाव ने उन्हें अध्ययनशील, ध्यानशील और तपस्वी बना दिया। एमए पास करने के बाद उन्होंने 1932 तक कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में काम किया। इस अवधि के दौरान उन्होंने तीन बार इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों का दौरा किया और समाजवादी नेताओं और विद्वानों के संपर्क में आये। और समाजवादी साहित्य का अध्ययन किया, अपनी प्रोफेसरशिप से इस्तीफा दे दिया और 1932 में गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में कूद पड़े । अगले दस वर्षों के दौरान उन्हें कई बार कैद किया गया।

अच्युत पटवर्धन भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता एवं अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे। सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया  के संस्थापक थे। वह एक दार्शनिक भी थे जिनका मानना ​​था कि समाज में मूलभूत परिवर्तन स्वयं मनुष्य से शुरू होता है। भारत की आजादी के बाद उन्होने सन् 1947 में भारत की समाजवादी पार्टी की स्थापना की। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होने महती भूमिका अदा की। और 1945 से 1946 में वे भूमिगत हो गए और गिरफ्तारी से बचते हुए। उन्होंने मुख्य रूप से सतारा जिले में समानांतर सरकार के आंदोलन का समर्थन किया ।सतारा की समानांतर सरकार "प्रति-सरकार" थी जो 44 महीने की सबसे लंबी अवधि तक चली। कुछ लोगों द्वारा इसे 'पैतृक सरकार' कहा जाता था। 'पात्री' लुटेरों, गद्दारों और समानांतर सरकार में बाधा डालने का साहस करने वाले लोगों को दी जाने वाली सज़ाओं को दिया गया नाम था। जिन्हें कांग्रेस आंदोलन में उनकी सत्याग्रह गतिविधियों के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1932 से 1942 तक 8 बार गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया। उनके महान और दूरदर्शी नेतृत्व के तहत सतारा जिले के 20 हिस्सों में समानांतर सरकार स्थापित की गई और प्रभावी ढंग से चलाई गई। लगभग 500 गाँव वास्तव में ब्रिटिश साम्राज्य से "मुक्त" थे। समानांतर सरकार ने उन गाँवों में प्रवेश किया जहाँ सरकारी तंत्र पूरी तरह से टूट गया। 

अच्युतराव ने व्यक्तिगत रूप से इस आंदोलन में कार्यकर्ताओं के कपड़े धोकर और उनका भोजन पकाकर सेवा की। मई 1946 के बाद जब समानांतर सरकार के सभी कार्यकर्ता जनता के सामने आने लगे तो उन्होंने उनके साथ सार्वजनिक बैठकों में भाग लिया। 1947 में उन्होंने कांग्रेस से स्वतंत्र होकर सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का गठन किया। 1950 में, अच्युत ने राजनीति से संन्यास ले लिया और 1966 तक सेंट्रल हिंदू कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में फिर से काम किया। उस पद के बाद, उन्होंने पुणे में पूरी तरह से एकांत और सेवानिवृत्त जीवन व्यतीत किया।सार्वजनिक रूप से बिल्कुल भी दिखाई नहीं दिए और पत्राचार का जवाब भी नहीं दिया।


 

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