मंगल पांडे का जीवन परिचय। Biography of Mangal Pandey
मंगल पांडे का जीवन परिचय। Biography of Mangal Pandey
मंगल पांडे, 'मारो फिरंगी को' नारा देने वाले भारत के प्रथम क्रांतिकारी की जीवनी
नाम: मंगल पांडे
जन्म: 19 जुलाई, 1827 ई.
स्थान: नगवा गाँव, बलिया ज़िला अथवा सुरहुरपुर ग्राम, फ़ैज़ाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु: 8 अप्रैल 1857 ई.
स्थान: बैरकपुर, कलकत्ता
मृत्यु कारण: फाँसी
पिता: दिवाकर पांडे, माता: अभयरानी
पेशा: सैनिक
यूनिट: बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34वीं रेजिमेंट
प्रसिद्धि: प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
मंगल पांडे का नारा: 'मारो फिरंगी को'
आंदोलन: भारतीय स्वाधीनता संग्राम 1857,
प्रमुख संगठन: जंग-ए-आज़ादी
कार्य: सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत,
👉1849 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में ज्वाइन किया,
👉केतन मेहता द्वारा निर्देशित "मंगल पांडे: द राइजिंग " नामक विद्रोह की घटनाओं पर आधारित एक फिल्म बनी जो 12 अगस्त 2005 को रिलीज़ हुई थी।
मंगल पांडे का जीवन परिचय।
मारो फिरंगी को' नारा देने वाले क्रांतिकारी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई 1827 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक "ब्राह्मण" परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था तथा माता का नाम श्रीमती अभयरानी था। "ब्राह्मण" होने के कारण मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना मे बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34वी बटालियन मे भर्ती किये गए। जिसमें ज्यादा संख्या मे ब्राह्मणो को भर्ती की जाती थी। मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया। 1857 विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।
29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो दुगवा रहीमपुर (फैजाबाद) के रहने वाले थे। रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया।
जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल 1857 को फ़ांसी दे दी गयी। मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी। विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में बगावत हो गयी। ओर गुर्जर धनसिंह कोतवाल इस के जनक के रूप में सामने आए। यह अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया। कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है। जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।
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