बेगम हज़रत महल का जीवन परिचय हिंदी में | history of begum hazrat mahal and biography in hindi

 


बेगम हज़रत महल का जीवन परिचय हिंदी में | history of begum hazrat mahal and biography in hindi

नाम: बेगम हज़रत महल

उपनाम: मोहम्मदी खानम, महेक परी

जन्म: 1820 ई., फ़ैज़ाबाद, अवध, भारत

मृत्यु: 7 अप्रैल 1879, काठमांडू, नेपाल

पति: वाजिद अली शाह

बच्चे: बिरजिस क़द्र

धर्म: शिया इस्लाम

प्रसिद्धि: वीरांगना

कार्य: नबाब वाजिद अली शाह की पत्नी, 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह 

बेगम हज़रत महल का जीवन परिचय। 

बेगम हजरत महल का नाम मोहम्मदी खानम था। और इनका जन्म 1820 में अवध राज्य की पूर्व राजधानी फैजाबाद में हुआ था। इनके माता पिता ने इन्हे बेच दिया। और पेशे से तवायफ बन गई। शाही एजेंटों को बेचे जाने के बाद वह खवासिन के रूप में शाही हरम में दाखिल हुई। जहां उसे परी के रूप में पदोन्नत किया गया। और उसे महेक परी के नाम से जाना गया।अवध के नवाब की शाही रखैल के तौर पर स्वीकार की जाने पर उन्हें "बेगम" का ख़िताब हासिल हुआ। और उनके बेटे बिरजिस क़द्र के जन्म के बाद उन्हें 'हज़रत महल' का ख़िताब दिया गया था।

बेगम हज़रत महल जो अवध की बेगम के नाम से भी प्रसिद्ध थीं। अवध के नवाब  वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं। और 1857 से 1858 में अवध की संरक्षिका थीं। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के निर्वासन के बाद उन्होंने  लखनऊ पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपनी अवध रियासत की हुकूमत को बरक़रार रखा। अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े से अपनी रियासत बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटे नवाबज़ादे  बिरजिस क़द्र को अवध के शासक नियुक्त करने की कोशिश की थी। मगर उनका शासन जल्द ही ख़त्म होने की वजह से उनकी यह कोशिश असफल रह गई। 

1856 में अंग्रेज़ों ने अवध पर क़ब्ज़ा कर लिया था। और वाजिद अली शाह को कलकत्ते में निर्वासित कर दिया गया था। कलकत्ते में उनके पति निर्वासित होने के बाद, बेगम हज़रत महल ने अवध रियासत के राजकीय मामलों को संभाला।

इन्हें 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह में अग्रणी भूमिका के लिए जाना जाता है। आज़ादी के पहले युद्ध के दौरान, 1857 से 1858 तक, राजा जयलाल सिंह की अगुवाई में बेगम हज़रत महल के हामियों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ बग़ावत की। बाद में, उन्होंने लखनऊ पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया और उन्होंने अपने बेटे बिरजिस क़द्र को अवध के शासक घोषित कर दिया। बेगम हज़रत महल की प्रमुख शिकायतों में से एक यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने सड़कें बनाने के लिए मंदिरों और मस्जिदों को आकस्मिक रूप से ध्वस्त किया था। विद्रोह के अंतिम दिनों में जारी की गई एक घोषणा में। उन्होंने अंग्रेज़ सरकार द्वारा धार्मिक आज़ादी की अनुमति देने के दावे का मज़ाक उड़ाया। जब अंग्रेज़ों के आदेश के तहत सेना ने लखनऊ और ओध के अधिकांश इलाक़े को क़ब्ज़ा कर लिया। तो हज़रत महल को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। आख़िरकार, उन्हें नेपाल जाना पड़ा, जहाँ उन्हें पहले राणा के प्रधान मंत्री जंग बहादुर ने शरण से इंकार कर दिया था। लेकिन बाद में उन्हें रहने की इजाज़त दी गयी थी। उन्होंने  नेपाल में शरण मिली जहाँ उनकी मृत्यु 1879 में हुई थी। बेगम हज़रत महल का मक़बरा जामा मस्जिद, घंटाघर के पास काठमांडू के मध्य भाग में स्थित है। इसकी देखभाल जामा मस्जिद केंद्रीय समिति ने की है। 15 अगस्त 1962 को महल को महान विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए लखनऊ के हज़रतगंज के पुराने विक्टोरिया पार्क में सम्मानित किया गया था। 10 मई 1984 को भारत सरकार ने महल के सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। 


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