महर्षि चरक का जीवन परिचय | Biography of Maharishi Charak- Father of Medicine

 


Ayurveda के जनक, Aur "चरक संहिता" के रचयिता, महर्षि चरक की जीवनी। Biography of Charak in Hindi | भारत के प्राचीन वैज्ञानिक | 

नाम: महर्षि चरक

जन्म: 300 ईसा पूर्व, कश्मीर, भारत

मृत्यु: 200 ई. पूर्व लगभग

गुरु: वैशम्पायन

शिक्षा: तक्षशिला विश्वविद्यालय

रचना: "चरक संहिता" ग्रंथ 

प्रसिद्धि: चरक संहिता

जनक: आयुर्वेद चिकित्सा के जनक 

महर्षि चरक का जीवन परिचय। 

आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। इनका जन्म कश्मीर में लगभग 300 से 200 ईसा पूर्व माना जाता है। महर्षि चरक की शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय से हुई। चरक के पिता का नाम अग्निवेश था। चरक का रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है।

चरक-संहिता के नाम से जाना जाने लगा। चरक ने ग्रंथ को आठ भागों या अष्टांग स्थानों में विभाजित किया: सूत्र, निदान, विमान, शरीर, एंड्रिया, चिकित्सा, कल्प, और सिद्ध; प्रत्येक भाग में अनेक अध्याय थे। अलबरूनी ने लिखा है कि “औषध विज्ञान की हिन्दुओं की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक चरक सहिंता है”। संस्कृत भाषा में लिखी गयी इस  पुस्तक को 8 भाग और 120  अध्यायों में बांटा गया है। जिसमे 12 हजार  श्लोक और 2000 दवाइया है। सूत्र स्थान  में आहार-विहार, पथ्य-अपथ्य, शारीरिक  और मानसिक रोगों की चिकित्सा का  वर्णन है। महर्षि चरक ने अनेक रोगों के उपचार के बारे में बताया है। जैसे कि जोड़ों का दर्द, आँखों की समस्या, दांतों की समस्या, मधुमेह, अस्थमा, रक्तचाप, गुर्दे की समस्या, पेट से सम्बंधित रोग, हृदय रोग, कैंसर, टीबी के रोग, कामुख सक्ति, बवासीर, आदि।

चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है। तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं। आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा। चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों की भी उल्लेख है।उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया। चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया ।


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