कपिल मुनि का जीवन परिचय | kapil muni ka jeevan parichay |Biography of Kapil Muni

 


कपिल मुनि का जीवन परिचय | kapil muni ka jeevan parichay |Biography of Kapil Muni 


नाम: कपिल मुनि

जन्म: 700 वर्ष ई.पू. माना जाता है।

पिता: कर्दम 

माता: देवहुती

पत्नी: धृति

दर्शन: सांख्य

प्रसिद्ध ग्रंथ :- सांख्य सूत्र, तत्व समास, व्यास प्रभाकर, कपिल गीता, कपिल पंचराम, कपिल स्तोभ, कपिल स्मृति, और 'तत्वसमाससूत्र' को उसके टीकाकार कपिल द्वारा रचित मानते हैं।


कपिल मुनी का जीवन परिचय 

कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली  मुनि थे। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक थे। जिन्हें भगवान विष्णु का पंचम अवतार माना जाता है। इनका जन्म 700 वर्ष ईसा पूर्व कपिल का काल माना जा सकता है। इनकी माता का नाम देवहुती व पिता का नाम कर्दम था । कपिल मुनि की माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की कामना की थी। अतः भगवान विष्णु ने स्वयं उनके गर्भ से जन्म लिया था। कर्दम जब सन्न्यास लेकर वन जाने लगे तो देवहूती ने कहा, "स्वामी मेरा क्या होगा" इस पर ऋषि कर्दम ने कहा कि "तेरा पुत्र ही तुझे ज्ञान देगा।" समय आने पर कपिल ने माता को जो ज्ञान दिया। वही 'सांख्य दर्शन' कहलाया।

कपिल मुनी जिन्हें सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। इनके समय और जन्मस्थान के बारे में निश्चय नहीं किया जा सकता। पुराणों तथा महाभारत में इनका उल्लेख हुआ है। कहा जाता है, प्रत्येक कल्प के आदि में कपिल जन्म लेते हैं। जन्म के साथ ही सारी सिद्धियाँ इनको प्राप्त होती हैं। इसीलिए इनको आदिसिद्ध और आदिविद्वान्‌ कहा जाता है। इनको अग्नि  का अवतार और ब्रह्मा का मानसपुत्र भी पुराणों में कहा गया है। श्रीमद्भगवत के अनुसार कपिल विष्णु के पंचम अवतार माने गए हैं। कर्दम और देवहूति से इनकी उत्पत्ति मानी गई है। बाद में इन्होंने अपनी माता देवहूति को सांख्यज्ञान का उपदेश दिया जिसका विशद वर्णन श्रीमद्भगवत के तीसरे स्कन्ध में मिलता है।

कपिलवस्तु, जहाँ बुद्ध पैदा हुए थे, कपिल के नाम पर बसा नगर था और सगर के पुत्र ने सागर के किनारे कपिल को देखा और उनका शाप पाया तथा बाद में वहीं गंगा का सागर के साथ संगम हुआ। इससे मालूम होता है कि कपिल का जन्मस्थान संभवत: कपिलवस्तु और तपस्याक्षेत्र गंगासागर था। इससे कम-से-कम इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि बुद्ध के पहले कपिल का नाम फैल चुका था। यदि हम कपिल के शिष्य आसुरि का शतपथ ब्राह्मण के आसुरि से अभिन्न मानें तो कह सकते हैं कि कम-से-कम ब्राह्मणकाल में कपिल की स्थिति रही होगी। इस प्रकार 700 वर्ष ईसा पूर्व कपिल का काल माना जा सकता है।

सांख्यशास्त्र का उद्देश्य तत्वज्ञान के द्वारा मोक्ष प्राप्त करना है। ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञकर्म के द्वारा अपवर्ग की प्राप्ति बतलाई गई है। कर्मकाण्ड के विपरीत ज्ञानकाण्ड को महत्व देना सांख्य की सबसे बड़ी विशेषता है। 

कपिल को आदिसिद्ध अथवा सिद्धेश कहने का अर्थ यह है कि सभ्भवत: कपिल ने ही सर्वप्रथम ध्यान और तपस्या का मार्ग बतलाया था। उनके पहले कर्म ही एक मार्ग था और ज्ञान केवल चर्चा तक सीमित था। ज्ञान को साधना का रूप देकर कपिल ने त्याग, तपस्या एवं समाधि को भारतीय संस्कृति में पहली बार प्रतिष्ठित किया।

कपिल मुनि के नाम से कई ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। जिनमें प्रमुख हैं। सांख्य सूत्र, तत्व समास, व्यास प्रभाकर, कपिल गीता, कपिल पंचराम, कपिल स्तोभ, और कपिल स्मृति,।कपिल ने क्या उपदेश दिया। यह कहना कठिन है। 'तत्वसमाससूत्र' को उसके टीकाकार कपिल द्वारा रचित मानते हैं। सूत्र छोटे और सरल हैं। इसीलिए मैक्समूलर ने उन्हें बहुत प्राचीन बतलाया। परंतु इस पर न तो कोई बहुत प्राचीन टीका उपलब्ध होती है। और न किसी पुराने ग्रंथ में इसका उल्लेख मिलता है। 8वीं शताब्दी के 

जैन ग्रंथ 'भगवदज्जुकीयम्‌' में सांख्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है।

कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे। उन्हे प्राचीन ऋषि कहा गया है। इन्हें सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है जिसके मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। कई लोग इन्हें  अनीश्वरवादी मानते हैं। लेकिन गीता में इन्हें श्रेष्ठ मुनि कहा गया है। कपिल ने सर्वप्रथम 

 विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखा। "कपिलस्मृति" उनका धर्मशास्त्र है। ये भगवान विष्णु के अवतार हैं।


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