maharshi kanaad ka jeevan parichay | महर्षि कणाद की जीवनी - Biography of Maharishi Kanad in hindi
परमाणु सिद्धांत के जनक, ऋषि कणाद ka jeevan parichay और वैशेषिकसूत्र के रचनाकार | maharshi kanaad ka jeevan parichay |
नाम: महर्षि कणाद
उपनाम: कनाडा, कश्यप, कणाद
जन्म: छठी शताब्दी ई.पू.
स्थान: प्रभास पाटण, गुजरात, भारत
क्षेत्र: भारतीय दर्शन
विद्यालय: वैशेषिक
उल्लेखनीय विचार: परमाणुवाद
जनक: परमाणु सिद्धांत
पुस्तकें: वैशेषिक सूत्र,
रुचियाँ: तत्त्वमीमांसा, नीति, भौतिक विज्ञान
महर्षि कणाद का जीवन परिचय।
प्राचीन भारतीय ऋषि, वैज्ञानिक और दार्शनिक थे। महर्षि कणाद जिन्हें कणाद के नाम से भी जाना जाता है। कणाद का जन्म अनुमान है कि ईसा पूर्व छठी या सातवीं शताब्दी में रहते थे। कणाद किस शताब्दी में रहते थे। यह स्पष्ट नहीं है। वायुपुराण में उनका जन्म स्थान प्रभास पाटण बताया है। उन्हें पदार्थ के अपने परमाणु सिद्धांत के लिए जाना जाता है। जिसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक "वैशेषिक सूत्र" में किया है। कणाद का परमाणु सिद्धांत इस विचार पर आधारित था। कि सभी पदार्थ छोटे, अविभाज्य कणों से बने होते हैं। जिन्हें परमाणु कहा जाता है। कणाद जिसे उलूक, कश्यप, कणभक्ष, कणभुज के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन भारतीय प्राकृतिक वैज्ञानिक और दार्शनिक थे। जिन्होंने भारतीय दर्शन के "वैशेषिक विद्यालय" की स्थापना की जो प्रारंभिक भारतीय भौतिकी का भी प्रतिनिधित्व करता है। उनके पारंपरिक नाम "कणडा" का अर्थ है "परमाणु भक्षक" और उन्हें संस्कृत पाठ वैशेषिक सूत्र में भौतिकी और दर्शन के लिए परमाणु दृष्टिकोण की नींव विकसित करने के लिए जाना जाता है। उनके पाठ को कणाद सूत्र, या "कनाडा की सूत्र" के रूप में भी जाना जाता है। कणाद ऋषि स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने सूत्र रूप में लिखा। ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणभुक्" कहते थे। किसी का कहना है कि कण अर्थात् 'परमाणु तत्व' का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है। इसलिए इन्हें "कणाद" कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये समाधि में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति "उल्लू" पक्षी की है। किस का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
कण सिद्धान्त भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है। इस "सिद्धांत के जनक महर्षि कणाद" थे। वैशेषिकसूत्र कणाद मुनि द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन का मुख्य ग्रन्थ है। इस पर अनेक टीकाएं लिखी गयीं जिसमें प्रशस्तपाद द्वारा रचित पदार्थधर्मसङ्ग्रह प्रसिद्ध है। कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छः पदार्थों का निर्देश किया है। कणाद भारत के संतों में से थे। जो मनुष्य के अस्तित्व को समझने और भगवान के बिना अपने दम पर मोक्ष तक पहुंचने की क्षमता में विश्वास करते थे। प्राचीन भारतीयों की एक धारणा को नीत्शे ने इस विश्वास के साथ संक्षेप में प्रस्तुत किया कि "पवित्रता और ज्ञान के साथ" वेद, कुछ भी असंभव नहीं है"
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