ज्योतिषी एवं खगोलशास्त्री, वराहमिहिर का जीवन परिचय | Varahamihira ka jeevan parichay in Hindi|


ज्योतिषी एवं खगोलशास्त्री, वराहमिहिर का जीवन परिचय | Varahamihira ka jeevan parichay in Hindi|


नाम: वराहमिहिर

जन्म: लगभग 499 या 505 ईसा, कायथा गाँव, उज्जैन,

मृत: 587 ईसा, उज्जैन, भारत

पिता: आदित्यदास

पुत्र: पृथुयशा

पेशा: ज्योतिषी-खगोलशास्त्री

रचनाएँ: पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता,  बृहज्जातक, 

पुरस्कार-उपाधि: महाराज विक्रमादित्य ने मिहिर को मगध देश का सर्वोच्च सम्मान वराह प्रदान किया।

विशेष: वराह मिहिर की मुलाक़ात 'आर्यभट' के साथ हुई। इस मुलाक़ात का यह प्रभाव पड़ा कि वे आजीवन खगोलशास्त्री बने रहे। आर्यभट वराहमिहिर के गुरु थे, ऐसा भी उल्लेख मिलता है।

वराहमिहिर का जीवन परिचय। 

महान गणितज्ञ वराहमिहिर का जन्म 505 ईसा में एक ज्योतिषी परिवार में हुआ था। यह परिवार उज्जैन में शिप्रा नदी के निकट कपित्थ नामक गांव का निवासी था। उनके पिता "आदित्यदास" सूर्य भगवान के भक्त थे। उन्हीं ने मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई। कुसुमपुर (पटना) जाने पर युवा मिहिर महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ  आर्यभट्ट से मिले। इससे उसे इतनी प्रेरणा मिली कि उसने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। उस समय उज्जैन विद्या का केंद्र था। गुप्त शासन के अन्तर्गत वहां पर कला, विज्ञान और संस्कृति के अनेक केंद्र पनप रहे थे। वराह मिहिर इस शहर में रहने के लिये आ गये क्योंकि अन्य स्थानों के विद्वान भी यहां एकत्र होते रहते थे। समय आने पर उनके ज्योतिष ज्ञान का पता विक्रमादित्य  चन्द्रगुप्त द्वितीय को लगा। राजा ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। मिहिर ने सुदूर देशों की यात्रा की। यहां तक कि वह यूनान तक भी गये। सन् 587 ईसा में महान गणितज्ञ वराहमिहिर की मृत्यु हो गई।

वराहमिहिर पाँचवीं-छठी शताब्दी ईसा के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। यह चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे।

उज्जैन में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है।

महान गणितज्ञ वराहमिहिर की महत्वपूर्ण रचना। 550 ई. के लगभग इन्होंने तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी। "बृहज्जातक,  बृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका," लिखीं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं। जो वराहमिहिर के  त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं।

पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है। ये सिद्धांत हैं। पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत। वराहमिहिर ने इन पूर्वप्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। इन्होंने फलित ज्योतिष के लघुजातक, बृहज्जातक तथा बृहत्संहिता नामक तीन ग्रंथ भी लिखे हैं। बृहत्संहिता में वास्तुविद्या, भवन-निर्माण-कला, वायुमंडल की प्रकृति, वृक्षायुर्वेद आदि विषय सम्मिलित हैं।

वाराहमिहिर ने आर्यभट्ट प्रथम द्वारा प्रतिपादित ज्या सारणी को और अधिक परिशुद्धत बनाया।

वराहमिहिर ने शून्य एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया।

वराहमिहिर का प्रकाशिकी में भी योगदान है। उन्होने कहा है कि परावर्तन कणों के प्रति-प्रकीर्णन से होता है। उन्होने  अपवर्तन की भी व्याख्या की है।

इनका वैज्ञानिक योगदान भी रहा बराहमिहिर वेदों के ज्ञाता थे मगर वह अलौकिक में आंखे बंद करके विश्वास नहीं करते थे। उनकी भावना और मनोवृत्ति एक वैज्ञानिक की थी। अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिक आर्यभट्ट की तरह उन्होंने भी कहा कि पृथ्वी गोल है। विज्ञान के इतिहास में वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि कोई शक्ति ऐसी है जो चीजों को जमीन के साथ चिपकाये रखती है। आज इसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण कहते है।



 

टिप्पणियाँ

Read more

भारत के सभी प्रधानमंत्रियों की संक्षिप्त जीवनी छवि।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जीवन

महान भारतीय वैज्ञानिक सी एन आर राव के पुरस्कार | Indian Scientist CNR Rao Award |