महान भारतीय विक्रम साराभाई का जीवन परिचय | विक्रम साराभाई की जीवनी | Dr. Vikram Sarabhai ka jivan parichay

 


अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक, डॉ. विक्रम साराभाई का जीवन परिचय | Vikram Sarabhai ka jeevan parichay | 

पूरानाम: विक्रम अंबालाल साराभाई

नाम: विक्रम साराभाई

जन्म:12 अगस्त 1919 ई.

स्थान: अहमदाबाद, भारत

मृत्यु: 30 दिसम्बर 1971 ई.

स्थान: तिरुवनंतपुरम, भारत

पिता: अम्बालाल साराभाई 

माता: सरला देवी 

पत्नी: मृणालिनी साराभाई 

शिक्षा: प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपॉस, पी.एच.डी

विद्यालय:  सेंट जॉन्स कॉलेज, शेठ चिमनलाल नागिनदास विद्यालय, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, गुजरात कॉलेज और विज्ञान कॉलेज

संस्थान: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भौति अनुसंधान प्रयोगशाला,

परमाणु ऊर्जा आयोग (भारत)

प्रसिद्धि: भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, भारत का परमाणु कार्यक्रम

पुरस्कार: शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार (1962),  पद्मभूषण (1966), पद्मविभूषण, मरणोपरान्त (1972) 

👉 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष 1969 से 1971 तक

👉 अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष 1963 से1969 तक।

👉 भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष 1966 से 1971 तक।

👉 ISRO के जनक विक्रम साराभाई है।

👉 विक्रम साराभाई भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का "जनक" माना जाता है। 

विक्रम साराभाई का जीवन परिचय ।

विक्रम अंबालाल साराभाई जैन एक भारतीय भौतिक विज्ञानी और  खगोलशास्त्री थे। जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान शुरू किया। और भारत में परमाणु ऊर्जा विकसित करने में मदद की।इनका पूरा नाम 'डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई' था। डॉ॰ विक्रम साराभाई का जन्म अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को एक समृद्ध जैन  परिवार में जन्म हुआ था। अहमदाबाद में उनका पैत्रिक घर "द रिट्रीट" में उनके बचपन के समय सभी क्षेत्रों से जुड़े महत्वपूर्ण लोग आया करते थे। 

उनके पिता का नाम श्री 'अम्बालाल साराभाई' और माता का नाम 'श्रीमती सरला साराभाई' था। उनकी पत्नी का नाम 'मृणालिनी साराभाई' था। विक्रम साराभाई की प्रारम्भिक शिक्षा उनकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम मारिया मोन्टेसरी की तरह शुरू किए गए पारिवारिक स्कूल में हुई। गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1937 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) चले गए। और उन्होंने 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में अपना स्थान लिया। 1945 में वह अपनी पीएचडी करने के लिए कैम्ब्रिज लौट आए। और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे जहां वह महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन के निरीक्षण में ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसन्धान करने लगे। उन्होंने अपना पहला अनुसन्धान लेख "टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़" भारतीय विज्ञान अकादमी की कार्यविवरणिका में प्रकाशित किया। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैम्ब्रिज लौट गए। 1947 में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक रे पर अपने शोधग्रंथ के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे भारत लौट आए और यहां आ कर उन्होंने कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया।

भारत में अंतरिक्ष विज्ञान के उद्गम स्थल के रूप में जानी जाने वाली भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) की स्थापना 1947 में विक्रम साराभाई द्वारा की गई थी। पीआरएल की कॉस्मिक किरणों पर शोध के साथ उनके निवास, "रिट्रीट" में एक मामूली शुरुआत हुई । संस्थान की औपचारिक स्थापना 11 नवंबर 1947 को एमजी साइंस इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद में की गई थी। साराभाई ने एक भारतीय उपग्रह के निर्माण और प्रक्षेपण के लिए एक परियोजना शुरू की। परिणामस्वरूप, पहला भारतीय उपग्रह, आर्यभट्ट , 1975 में एक रूसी कॉस्मोड्रोम से कक्षा में स्थापित किया गया था। 

विक्रम अंबालाल साराभाई भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। इन्होंने 86 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं 40 संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन 1966 में  भारत सरकार द्वारा 'पद्मभूषण' और 1972 में 'पद्म विभूषण' (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था। डॉ॰ विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया।

इनकी मृत्यु 30 दिसंबर 1971 को, साराभाई को उसी रात मे बॉम्बे के लिए प्रस्थान करने से पहले एसएलवी डिजाइन की समीक्षा करनी थी। उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम से टेलीफोन पर बात की थी। बातचीत के एक घंटे के भीतर, साराभाई की तिरुवनंतपुरम  में हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार अहमदाबाद में किया गया ।




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