हरगोबिंद खुराना का जीवन परिचय | Hargobind Khorana ka jeevan parichay |

 


कृत्रिम DNA का जनक, प्रोफेसर हरगोविंद खुराना का जीवन परिचय। HarGobind Khorana ka jeevan parichay | 

नाम: हरगोबिंद खुराना

जन्म: 9 जनवरी,1922 ई.

स्थान: रायपुर, पाकिस्तान, ब्रिटिशभारत

मृत्यु: 9 नवंबर, 2011 ई. 

स्थान: मैसेच्यूसेट्स, अमेरिका

माता: कृष्णा देवी खुराना

पिता: गणपत राय

पत्नी: एस्तेर एलिजाबेथ सिब्लर

कर्मक्षेत्र: आणविक जीव विज्ञान

विद्यालय: लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय, सरकारी छात्रवृत्ति पर लिवरपूल यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड

शिक्षा: स्नातक, बी.एस-सी, एम.एस-सी, एचडी,

प्रसिद्धि: प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने वाले वह पहले थे

पुरस्कार: फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार, लुईसा ग्रॉस होर्विट्ज़ पुरस्कार, पद्म विभूषण 

विशेष योगदान: 1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए. अणु के घुमावदार 'सोपान' पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है।



हरगोबिंद खुराना का जीवन परिचय। 

हरगोबिंद खुराना एक भारतीय अमेरिकी जैव रसायनज्ञ थे जिन्होने अणुजैविकी के क्षेत्र में युगांतकारी शोध किए। उनके द्वारा न्यूक्लिक एसिड में न्यूक्लियोटाइड का क्रम खोजा गया। हर गोबिंद खुराना का जन्म 'गणपत राय खुराना' और 'कृष्णा देवी' के घर रायपुर,  मुल्तान,  पंजाब, ब्रिटिश भारत में एक पंजाबी  हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। उनके जन्म की सही तारीख निश्चित नहीं है। लेकिन उनका मानना ​​था। कि इनका जन्म 9 जनवरी 1922 में हुआ था। और इनकी मृत्यु 9 नवंबर,  2011 को हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। जो ब्रिटिश भारतीय सरकार में एक ग्रामीण कृषि कराधान क्लर्क थे। हर गोबिंद खुराना ने 1952 में 'एस्थर एलिजाबेथ सिब्लर' से शादी की। उनकी मुलाकात स्विट्जरलैंड में हुई थी। खुराना ने पश्चिम पंजाब के मुल्तान में डीएवी 'दयानंद एंग्लो-वैदिक' हाई स्कूल में पढ़ाई की। बाद में, उन्होंने छात्रवृत्ति की सहायता से  लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। जहां उन्होंने 1943 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।और 1945 में मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। तथा भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड गए। यहाँ लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के अधीन अनुसंधान कर इन्होंने डाक्टरैट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं और ये जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए। भारत में वापस आकर डाक्टर खुराना को अपने योग्य कोई काम न मिला। हारकर इंग्लैंड चले गए। जहाँ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सदस्यता तथा लार्ड टाड के साथ कार्य करने का अवसर मिला। सन् 1952 में आप वैकवर (कनाडा) की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैवरसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् 1960 में इन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद पाया। यहाँ उन्होंने अमरीकी  नागरिकता स्वीकार कर ली।

चिकित्सक खुराना जी जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज दीर्घकाल से हो रही है। पर डाक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से वह संभव हुआ। इनके अध्ययन का विषय 'न्यूक्लिऔटिड' नामक उपसमुच्चर्यों की अतयंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। डाक्टर खुराना इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुये। नाभिकीय अम्ल सहस्रों एकल न्यूक्लिऔटिडों से बनते हैं। जैव कोशिकओं के आनुवंशिकीय गुण इन्हीं जटिल बहु न्यूक्लिऔटिडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं। डॉ॰ खुराना ग्यारह न्यूक्लिऔटिडों का योग करने में सफल हो गए थे। इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवंशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है और वैज्ञानिक अब आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उनको दूर करने का उपाय ढूँढने में सफल हो सकेंगे। डाक्टर खुराना की इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें अन्य दो अमरीकी वैज्ञानिकों  मार्शल डब्ल्यू निरेनबर्ग और रॉबर्ट डब्ल्यू होली के साथ के साथ सन् 1968 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। आपको इसके पूर्व सन् 1958 में  कनाडा के केमिकल इंस्टिटयूट से मर्क पुरस्कार मिला तथा इसी वर्ष आप  न्यूयार्क के राकफेलर इंस्ट्टियूट में वीक्षक (visiting) प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् 1959 में ये कनाडा के केमिकल इंस्ट्टियूट के सदस्य निर्वाचित हुए तथा सन् 1967 में होनेवाली जैवरसायन की अंतरराष्ट्रीय परिषद् में आपने उद्घाटन भाषण दिया। डॉ॰ निरेनबर्ग के साथ आपको पचीस हजार डालर का लूशिया ग्रौट्ज हॉर्विट्ज पुरस्कार भी सन् 1968 में ही मिला है। गूगल ने 9 जनवरी 2018 में उनकी 96 वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए और उनके कार्यों का सम्मान करते हुए उनकी याद में गूगल डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया।

भारत में पैदा हुए। हरगोविंद खुराना ने उत्तरी अमेरिका में तीन विश्वविद्यालयों के संकाय में कार्य किया। वह 1966 में संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक बन गए। और 1987 में विज्ञान का राष्ट्रीय पदक प्राप्त किया।


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