श्रीनिवास रामानुजन् का जीवन परिचय | Ramanujan ka jeevan parichay |


श्रीनिवास रामानुजन् का जीवन परिचय | Srinivasa Ramanujan ka jeevan parichay | 

पूरा नाम: श्रीनिवास अयंगर रामानुजन

नाम: रामानुजन

जन्म: 22 दिसंबर, 1887 ई.

स्थान:  इरोड, भारत

मृत्यु: 26 अप्रैल 1920 ई.

स्थान:  मद्रास, ब्रिटिश भारत

मृत्यु का कारण: क्षय रोग

माता: कोमल ताम्मल, 

पिता: कुप्पुस्वामी श्रीनिवास अयंगर

पत्नी: जानकी अम्मल 

प्रसिद्धि: गणितज्ञ

शिक्षा: विद्यालय: मद्रास विश्वविद्यालय, टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल (1898-1904),गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज स्वायत्त (1904-1905), ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1916), 

पुरस्कार: रॉयल सोसाइटी के फेलो (1918)

योगदान: गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं।

प्रमुखकार्य: 33 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाला रामानुजन ने दुनिया को लगभग 3500 गणितीय सूत्र दिए थे. गणित में रामानुजन का सबसे बड़ा योगदान रामानुजन संख्या यानी 1729 को माना जाता है। यह ऐसी सबसे छोटी संख्या है, जिसको दो अलग-अलग तरीके से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है। 1729, 10 और 9 के घनों का योग है- 10 का घन है 1000 और 9 का घन है 927 और इन दोनों को जोड़ने से हमें 1729 प्राप्त होती है।

श्रीनिवास रामानुजन् का जीवन परिचय। 

आधुनिक भारत के महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के कोयंबतूर जिले के इरोड नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता नाम "श्रीनिवास इयंगर" था। जो कि स्थानीय कपडे की दुकान में मुनीम थे। इनकी माता जी का नाम "कोमल तम्मल" था। जो एक गृहिणी महिला थी। जब रामानुजन एक वर्ष के हुए थे।तभी उनका परिवार कुम्भकोणम में आकर बस गया। 22 वर्ष की उम्र में रामानुजन का विवाह उनसे 10 साल छोटी "जानकी" से हुआ। 

1 अक्टूबर 1892 को, रामानुजन का नामांकन स्थानीय स्कूल में हुआ। उन्हें मद्रास में स्कूल पसंद नहीं आया और उन्होंने वहां जाने से बचने की कोशिश की। उनके परिवार ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक स्थानीय कांस्टेबल को नियुक्त किया कि वह स्कूल जाएं। छह महीने के भीतर, रामानुजन कुंभकोणम वापस आ गए। कंगयान प्राइमरी स्कूल में रामानुजन ने अच्छा प्रदर्शन किया। 10 साल के होने से ठीक पहले, नवंबर 1897 में, उन्होंने अंग्रेजी,  तमिल, भूगोल और अंकगणित में अपनी प्राथमिक परीक्षा जिले में सर्वोत्तम अंकों के साथ उत्तीर्ण की। 11 साल की उम्र तक, उसने दो कॉलेज छात्रों के गणितीय ज्ञान को समाप्त कर दिया था। जो उसके घर पर रहते थे। बाद में उन्हें S द्वारा लिखित एक पुस्तक उधार दी गई। एल. लोनीउन्नत त्रिकोणमिति पर। वह 13 साल की उम्र में उन्होंने खुद ही परिष्कृत प्रमेयों की खोज करते हुए। इसमें महारत हासिल कर ली। 14 साल की उम्र में, उन्हें योग्यता प्रमाण पत्र और अकादमिक पुरस्कार प्राप्त हुए। जो उनके पूरे स्कूल करियर के दौरान जारी रहे। और उन्होंने अपने 1,200 छात्रों को लगभग 35 शिक्षकों को नियुक्त करने में स्कूल की सहायता की। 

1898 में इन्होंने टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया और सभी विषयों में अच्छा प्रदर्शन किया। जब रामानुजन ने 1904 में टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तो स्कूल के प्रधानाध्यापक कृष्णस्वामी अय्यर द्वारा उन्हें गणित के लिए के. रंगनाथ राव पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

1910 में, 23 वर्षीय रामानुजन और भारतीय गणितीय सोसायटी के संस्थापक के बीच एक बैठक के बाद, V. रामास्वामी अय्यर, रामानुजन को मद्रास के गणितीय हलकों में पहचान मिलनी शुरू हुई।

रामानुजन और इनके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया। श्रीनिवास रामानुजन अधिकतर गणित के महाज्ञानी भी कहलाते है। उस समय के महान व्यक्ति लोन्हार्ड यूलर और कार्ल जैकोबी भी उन्हें खासा पसंद करते थे। जिनमे हार्डी के साथ रामानुजन ने विभाजन फंक्शन P(n) का अभ्यास कीया था। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। वे अपनी विख्यात खोज गोलिय विधि (Circle Method) के लिए भी जाने जाते है। श्रीनिवास रामानुजन एक भारतीय  गणितज्ञगणितीय विश्लेषण में उनका लगभग कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था। फिर भी उन्होंने शुद्ध गणित. हालाँकि संख्या सिद्धांत, अनंत श्रृंखला, और , जिसमें उस समय अघुलनशील मानी जाने वाली गणितीय समस्याओं के समाधान भी शामिल हैं।

सन् 1919 में इंग्लैण्ड से वापस आने के पश्चात् रामानुजन कोदमंडी गाँव में रहने लगे। रामानुजन का अंतिम समय चारपाई पर ही बीता। इंग्लैण्ड का मौसम उन्हें रास नहीं आया। इनका गिरता स्वास्थ्य सबके लिए चिंता का विषय बन गया और यहां तक की अब डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था। भारत लौटने के पश्चात् भी उनके स्वास्थ में कोई सुधार नहीं हुआ और 26 अप्रैल 1920 के प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होंने प्राण त्याग दिए। इस समय महज 33 वर्ष की अल्प आयु में तपेदिक (टीबी रोग) से श्रीनिवास रामानुजन का स्वर्गवास हो गया। 


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