भारतीय आविष्कारक, डॉ. शंकर अबाजी भिसे का जीवन परिचय | Shankar Abaji Bhise ka jeevan parichay |

 


भारतीय आविष्कारक, डॉ. शंकर अबाजी भिसे का जीवन परिचय | Shankar Abaji Bhise ka jeevan parichay | 

जन्म: 29 अप्रैल 1867 ई.

स्थान: मुंबई, भारत

मृत्यु: 7 अप्रैल, 1935, 

स्थान: न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका

पिता: आबाजी

शिक्षा: हाई स्कूल

व्यवसाय: वैज्ञानिक, आविष्कारक

स्थापना: मुम्बई में साइं सक्लब की स्थापना।

पुरस्कार: गोल्ड मेडल

अविष्कार: 200 से अधिक आविष्कार जिसमे कोल गैस उपकरण, ऑप्टिकल इल्यूजन, पेकिंग मशीन, टाइप सी कास्टिंग, कंपोजिंग मशीन, इलेक्ट्रीक मशीन प्रमुख है।

शंकर अबाजी भिसे का जीवन परिचय। 

भारत के एक वैज्ञानिक एवं अग्रणि आविष्कारक डॉ शंकर अबाजी भिसे का जन्म 29 अप्रैल, 1867 को मुंबई में हुआ था। और उनकी मृत्यु  7 अप्रैल 1935 की 68 साल की उम्र में न्यूयॉर्क में निधन हो गया था। उनके पिता आबाजी एक अदालत कर्मचारी थे। शंकर ने सिर्फ हाई स्कूल तक पढ़ाई की थी। बचपन के दिनों से ही विज्ञान के प्रति उनका काफी लगाव था। 14 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने घर में ही कोयला गैस बनाने वाले एक उपकरण को बनाया। 16 साल की उम्र में उन्होंने आविष्कार के लिए इंग्लैंड या अमेरिका जाने का फैसला किया। सन् 1890 से 1895 के दौरान उन्होंने ऑप्टिकल इलूजन पर काम किया। उन्होंने एक ठोस पदार्थ के दूसरे ठोस पदार्थ में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया। उन्होंने इंग्लैंड के मैनचेस्टर में इस तरह के शो का आयोजन किया। यूरोपीय लोगों ने जो आविष्कार किए थे। उनकी तुलना में भिसे के आविष्कार को श्रेष्ठ माना गया। अल्फ्रेड वेब नाम के वैज्ञानिक ने उनकी तारीफ की और उनको इस वजह से एक गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। डॉ शंकर अबाजी भिसे एक ऐसे ही वैज्ञानिक थे। जिन्हें भारत का एडिसन कहा जाता था। "भिसेटाइप" उनका सबसे मशूहर आविष्कार था। शंकर अबाजी भिसे ने 200 के लगभग आविष्कार किये। उन्होने लगभग 40 आविष्कार उनके नाम पर पेटेन्ट भी हुए। मुंबई में उन्होंने एक साइंस क्लब की स्थापना की और 'विविध कला प्रकाश' नामक एक मराठी भाषा की विज्ञान पत्रिका का सम्पादन भी किया। उन्हें "भारतीय एडिसन" कहा जाता है। उन्होने भारतीय मुद्रण प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिससे छपाई की गति पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ायी जा सकी। अन्तरराष्ट्रीय निवेशकों का मानना था कि उनके खोजें वैश्विक प्रिटिंग उद्योग में क्रांति ला देंगी। उन्हें अपने समय के अग्रणी भारतीय राष्ट्रवादियों का सहयोग और प्रशंसा मिली थी। उन्होंने मुंबई में एक साइंटिफ़िक क्लब खोला था। और 20 साल की उम्र तक वो गेजेट और मशीनें बनाने लगे थे जिनमें टैंपर-प्रूफ बोतल, इलैक्ट्रिकल साइकिल कॉन्ट्रासेप्शंस, बॉम्बे की उपनगरीय रेलवे प्रणाली के लिए एक स्टेशन संकेतक शामिल थे। जब शंकर अबाजी भिसे मुंबई में रहते थे तब उन्होंने एक "साइंस कल्ब" की स्थापना की थी। वह विविध कला प्रकाश नाम के मराठी पत्रिका का प्रकाशन भी करते थे। इसके माध्यम से वह आम भाषा में लोगो को विज्ञान का महत्व समझाते थे। शंकर अबाजी भिसे जी का सबसे प्रसिद्ध आविष्कार टाइप सी कास्टिंग और कंपोजिंग मशीन थी। उन दिनों टाइप सी कास्टिंग मशीन बड़ी धीमी रफ्तार वाली होती थी। उन्होंने एक ऐसी टाइप मशीन बनाई जिससे छपाई की रफ्तार काफी तेज़ हो गई। लंदन के कुछ इंजीनियर को उनके आविष्कार पर भरोसा नहीं हुआ ओर उन्होंने शंकर जी को चुनौती दी। उन्होंने 1908 में एक ऐसी मशीन बनाई जिसकी मदद से हर मिनट 1200 अलग अलग अक्षरों की छपाई ओर असैंबलिग हो सकती थी। उसके बाद उनके आलोचक भी उनके प्रतिभा का लोहा मान गए।

शंकर अबाजी भिसे एक महान आविष्कारक थे। यदि उनके आविष्कारों की कद्र की जाती तो शायद स्थिति कुछ और होती। उस समय भारत गुलामी और गरीबी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। विदेशियों द्वारा भारतीयो को हीन भावना से देखा जाता थे। शायद इन्ही कारणों से उन्हें उतनी लोकप्रियता और सहायता नही मिली, जिसके वो हकदार थे।


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