अमरचन्द बांठिया का जीवन परिचय | amarachand baanthiya ka jeevan parichay | सेठ अमरचंद बांठिया जैन की जीवनी हिन्दी में |


अमरचन्द बांठिया का जीवन परिचय | amarachand baanthiya ka jeevan parichay | सेठ अमरचंद बांठिया जैन की जीवनी हिन्दी में | 

नाम: अमरचन्द बांठिया

जन्म: 1793 ई. बीकानेर, राजस्थान

मृत्यु: 22 जून 1858 ई. ग्वालियर

पिता: अबीरचंद भाटिया

पेशा: स्वतंत्रता सेनानी, गंगाजलि कोषाध्यक्ष

धर्म: जैन, हिन्दू

बलिदान दिवसः हर वर्ष 22 जून को


अमरचन्द बांठिया का जीवन परिचय ।

अमरचन्द बांठिया या सेठ अमरचंद बांठिया जैन का जन्म 1793 में बीकानेर राजस्थान में हुआ था। अमरचन्द बांठिया ने देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा शुरू से ही उनमें था। बाल्यकाल से ही उन्होंने ठान रखा था। कि देश की आन-बान और शान के लिए कुछ कर गुजरना है। इतिहास में स्वर्गीय अमरचंद के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। लेकिन कहा जाता है। कि पिता के व्यावसायिक घाटे ने बांठिया परिवार को राजस्थान से ग्वालियर कूच करने के लिए मजबूर कर दिया। और यह परिवार सराफा बाजार में आकर बस गया।ग्वालियर की तत्कालीन सिंधिया रियासत के महाराज ने उनकी कीर्ति से प्रभावित होकर उन्हें राजकोष का कोषाध्यक्ष बना दिया। उनकी सादगी, सरलता तथा कर्तव्य परायणता के सभी कायल थे। सेठ अमरचंद बांठिया जैन भारत की स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के एक नायक थे।

1857 का स्वातंत्र समर अपने पूर्ण यौवन पर था। किन्तु दुर्भाग्य से तत्कालीन सिंधिया रियासत अंग्रेजों की मित्र थी। किन्तु अधिकारियों में अक्सर इस विषय में चर्चा हुआ करती थी। एक अधिकारी ने एक दिन जैन मत मानने वाले अमर चंद बांठिया जी से कहा कि भारत माता को दासता से मुक्त करने के लिए अब तो आपको भी अहिंसा छोड़कर शस्त्र उठा लेना चाहिए। बांठिया जी ने कहा कि भाई मैं हथियार तो नहीं उठा सकता। किन्तु एक दिन समय आने पर ऐसा काम करूंगा जिससे क्रान्ति के पुजारियों को मदद मिलेगी। तभी 1858 में भीषण गर्मी में लू के थपेड़ों के बीच, झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई तथा उनके योग्य सेना नायक राव साहब और तात्या टोपे आदि। सब अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने के लिए ग्वालियर के मैदान-ए-जंग में आ डटे थे। उस समय झांसी की रानी की सेना और ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों को कई महीनों से वेतन तथा राशन आदि का समुचित प्रबंध न हो पाने से संकटों का सामना करना पड़ रहा था। देश के ऐसे समय में अमरचंद बांठिया आगे बढ़े और महारानी लक्ष्मीबाई के एक इशारे पर ग्वालियर का सारा राजकोष विद्रोहियों के हवाले कर दिया। यह धनराशि उन्होंने 8 जून 1858 को उपलब्ध कराई। उनकी मदद के बल पर वीरांगना लक्ष्मीबाई दुश्मनों के छक्के छु़ड़ाने में सफल रहीं। श्री अमरचंद बांठिया को राजद्रोह के अपराध में उनके निवास स्थान के नजदीक सराफा बाजार में ही सार्वजनिक रूप से नीम के पेड़ पर लटका कर 22 जून 1858 को फाँसी दे दी गई थी। उसी जगह पर अमरचन्द बांठिया की प्रतिमा है। जहां हर वर्ष 22 जून को बलिदान दिवस मनाया जाता है। अंग्रेजों ने भले ही उन्हें फाँसी पर लटका दिया हो। पर उनका कार्य और शहादतर हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। 1857 की क्रान्ति में ग्वालियर का नाम स्वर्णाक्षरों में यदि लिखा गया है। तो केवल अमरचंद बांठिया की अतुलनीय बलिदानी गाथा के कारण। सेठ अमरचंद बांठिया जैन जी को राजस्थान का मंगल पांडे भी कहा जाता है।

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