अरुणा आसफ़ अली या अरुणा गांगुली का जीवन परिचय | Aruna Asif Ali ka jeevan parichay | अरुणा गांगुली की जीवनी हिन्दी में |

 


अरुणा आसफ़ अली या अरुणा गांगुली का जीवन परिचय | Aruna Asif Ali ka jeevan parichay | अरुणा गांगुली की जीवनी हिन्दी में |

पूरानाम: अरुणा आसफ़ अली

अन्यनाम: अरुणा गांगुली, ग्रैंड लेडी

जन्म: 16 जुलाई 1909 ई.

स्थान: कालका, भारत

मृत्यु: 29 जुलाई 1996 ई.

स्थान: नई दिल्ली, भारत 

पिता: उपेन्द्रनाथ गांगुली, 

माता: अम्बालिका देवी

पत्नी: असफ अली 

धर्म: हिन्दू 

शिक्षा: ऑल सेंट्स कॉलेज नैनीताल,  कॉन्वेंट ऑफ सेक्रेड हार्ट लाहौर

पेशा: स्वतंत्रता सेनानी, अध्यापक

पुस्तकें: एक राष्ट्र के विचार: अरुणा आसफ अली, भारतीय महिलाओं का पुनरुत्थान 

पुरस्कार: लेनिन शांति पुरस्कार 1964, जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार 1991, पद्म विभूषण 1992, इंदिरा गांधी पुरस्कार, भारत रत्न 1997, 

👉1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’  आंदोलन में विशेष योगदान था।

👉1975 में शांति एवं सौहार्द के क्षेत्र में लेनिन प्राइज़ से सम्मानित किया गया।

👉1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुई।

👉1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए व्यापक रूप से याद किया जाता है। 

👉1932 में उन्हें तिहाड़ जेल में बंदी बना लिया गया।

👉 1958 में वह दिल्ली की पहली मेयर (महापौर) चुनी गईं। 


अरुणा आसफ़ अली या अरुणा गांगुली का जीवन परिचय |

अरुणा आसफ़ अली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म का नाम अरुणा गांगुली था। उन्हे 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान, मुंबई के गोवालीया मैदान में कांग्रेस का झंडा फ्हराने के लिये हमेशा याद किया जाता है।

अरुणा आसफ़ अली का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण थी। उनके पिता 'उपेन्द्रनाथ गांगुली' पूर्वी बंगाल के बारिसल जिले से थे। उनकी मां 'अंबालिका देवी' एक प्रसिद्ध ब्रह्म नेता त्रैलोक्यनाथ सान्याल की बेटी थीं। अरुणा गांगुली बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। अरुणा की शिक्षा  लाहौर के सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट और फिर  नैनीताल के ऑल सेंट्स कॉलेज में हुई। स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई। और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।

इलाहाबाद में उनकी मुलाकात कांग्रेस पार्टी के नेता आसफ अली से हुई। धर्म और उम्र के आधार पर माता-पिता के विरोध के बावजूद, उन्होंने 1928 में शादी कर ली। वह एक मुस्लिम थे और उनसे 20 साल से अधिक बड़े थे। अरुणा आसफ अली की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका थी। आसफ अली से शादी करने के बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्य बन गईं। और नमक सत्याग्रह के दौरान सार्वजनिक जुलूसों में भाग लिया । उन्हें 21 साल की उम्र में इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था।

1932 में, उन्हें तिहाड़ जेल में बंदी बना लिया गया। जहाँ उन्होंने भूख हड़ताल शुरू करके राजनीतिक कैदियों के प्रति उदासीन व्यवहार का विरोध किया। उनके प्रयासों से तिहाड़ जेल में स्थितियों में सुधार हुआ।अपनी रिहाई के बाद वह राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय नहीं थीं। लेकिन 1942 के अंत में उन्होंने भूमिगत आंदोलन में भाग लिया। भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा आसफ अली जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बम्बई अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया। 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ। तभी  भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में सन 1948 ई. में अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुई। और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई। 1954 में, उन्होंने सीपीआई की महिला शाखा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन के गठन में मदद की। लेकिन 1956 में निकिता ख्रुश्चेव द्वारा स्टालिन को अस्वीकार करने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी।1958 में वह दिल्ली की पहली मेयर  चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया।

अरुणा आसफ़ अली 29 जुलाई 1996 को 87 वर्ष की आयु में उनकी नई दिल्ली में मृत्यु हो गई।

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