हिन्दी के पहले कवि, महाकवि चंदबरदाई का जीवन परिचय | Chandbardai ka jeevan parichay | चंदबरदाई की लघु जीवनी हिंदी में

 


हिन्दी के पहले कवि, महाकवि चंदबरदाई का जीवन परिचय | Chandbardai ka jeevan parichay | चंदबरदाई की लघु जीवनी हिंदी में |

मूल नाम: बलिद्ध्य

नाम: चंदबरदाई

जन्म: संवत 1205 सन् 1148 ई.

स्थान: लाहौर वर्तमान पाकिस्तान 

मृत्यु: संवत 1249 सन् 1192 ई.

स्थान: ग़ज़नी, अफ़ग़ानिस्तान

पत्नी: कमला, गौरान 

पुत्र: जल्हण

भाषा: ब्रजभाषा

प्रसिद्ध ग्रन्थ: पृथ्वीराज रासो

पुरस्कार: महाकवि

पेशा: राजकवि

रचनाएँ: पृथ्वीराज रासो

👉चंदबरदाई दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट, महाराजा पृथ्वीराज के सामंत और राजकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।

👉चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ “पृथ्वीराजरासो”  है।

👉पृथ्वीराज का दरबारी कवि चंद बरदाई है।

👉पृथ्वीराज रासो का मुख्य रस शृंगार तथा वीर रस की प्रधानता है। 

👉चंद्रवरदाई सम्राट 'पृथ्वीराज चौहान' के दरबारी कवि थे।

👉पृथ्वीराज रासो में कुल 69 स्वर्ग है।

👉पृथ्वीराज रासो में 68 छंदो का प्रयोग है।

👉पृथ्वीराज रासो को चंदबरदाई के पुत्र जल्हण ने पूरा किया है।

👉 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चंदबरदाई को हिंदी का प्रथम महाकवि कहा है।

चंदबरदाई का जीवन परिचय।

चंदबरदाई हिन्दी साहित्य के आदिकालीन  कवि तथा पृथ्वीराज चौहान के मित्र थे। उन्होने पृथ्वीराज रासो नामक प्रसिद्ध हिन्दी  ग्रन्थ की रचना की। चंदबरदाई जिन्हें चन्द्र भट्ट के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म संवत 1205 में लाहौर में हुआ था। इनका वास्तविक नाम बलिद्ध्य था। चंदबरदाई ने बाद में वह अजमेर-दिल्ली के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा। राजकवि और सहयोगी हो गए थे। इससे उसका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज चौहान के साथ दिल्ली में बीता था। वह राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहे थे। उसकी विद्यमानता का काल 13वीं सदी है।

चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "पृथ्वीराजरासो" है। इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है। जो राजस्थान में ब्रजभाषा का पर्याय है। इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवि माना जाता है। 'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई। है। इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है। अत: इसमें वीर और शृंगार दो ही रस है। चंदबरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है लेकिन शिलालेख प्रमाण से ये स्पष्ट होता है कि इस रचना को पूर्ण करने वाला कोई अज्ञात कवि है जो चंद और पृथ्वीराज के अन्तिम क्षण का वर्णन कर इस रचना को पूर्ण करता है। इनके द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो हिंदी भाषा का पहला प्रामाणिक काव्य माना जाता है।

चंदबरदाई को हिंदी का पहला कवि और उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना होने का सम्मान प्राप्त है। पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है। इसमें 10,000 से अधिक छंद हैं और तत्कालीन प्रचलित 6 भाषाओं का प्रयोग किया गया है। इस ग्रंथ में उत्तर भारतीय क्षत्रिय समाज व उनकी परंपराओं के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है। इस कारण ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है। वे भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के मित्र तथा राजकवि थे। पृथ्वीराज ने 1165 से 1192 तक अजमेर व दिल्ली पर राज किया। यही चंदबरदाई का रचनाकाल भी था।

चंद बरदाई एक भारतीय कवि थे। जिन्होंने  चाहमान राजा पृथ्वीराज चौहान के जीवन के बारे में ब्रजभाषा में एक महाकाव्य  पृथ्वीराज रासो की रचना की थी। कविता उन्हें पृथ्वीराज के दरबारी कवि के रूप में प्रस्तुत करती है। इसके अनुसार, तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज के पराजित होने और घोर के मुहम्मद द्वारा ग़ज़ना ले जाने के बाद, चंद बरदाई ने ग़ज़ना की यात्रा की और पृथ्वीराज को मुहम्मद को मारने में मदद की। 

संवत् 1249 को चंदबरदाई का मृत्यु हो गया था।

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