कुँवर बेचैन का जीवन परिचय | Kunwar Bechain ka jeevan parichay | कुँवर बेचैन की लघु जीवनी हिंदी में |
कुँवर बेचैन का जीवन परिचय | Kunwar Bechain ka jeevan parichay | कुँवर बेचैन की लघु जीवनी हिंदी में |
पूरानाम: कुँअर बहादुर सक्सेना
उपनाम: कुँवर बेचैन
जन्म: 1 जुलाई 1942 ई.
स्थान: मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु: 29 अप्रैल 2021 ई.
पिता: नारायणदास सक्सैना
माता: गंगादेवी,
पत्नी: संतोष कुंवर
शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी.,
पेशा: लेखक, कवि, संगीतकार
पुरस्कार: हिंदी गौरव सम्मान, साहित्यक भूषण पुरस्कार
रचनाएँ: कविता संग्रह:- नदी तुम रुक क्यों गई 1997, शब्दः एक लालटेन 1997, पाँचाली (महाकाव्य),
गीत संग्रह:- पिन बहुत सारे 1972, भीतर साँकलः बाहर साँकल 1978, उर्वशी हो तुम (1987, झुलसो मत मोरपंख 1990, एक दीप चौमुखी 1997, नदी पसीने की 2005, दिन दिवंगत हुए 2005,
ग़ज़ल संग्रह:- शामियाने काँच के 1983, आग पर कंदील 1993, आँधियों में पेड़ 1997, आठ सुरों की बाँसुरी 1997, आँगन की अलगनी 1997, तो सुबह हो 2000, कोई आवाज़ देता है 2005, आदि।
कुँवर बेचैन का जीवन परिचय ।
कुँवर बेचैन भारत के हिन्दी कवि थे। वह गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। कुंवर बेचैन जी हिंदी के प्रमुख कवि हैं।
डॉ. कुँवर बेचैन का जन्म 1 जुलाई 1942 को उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के उमरी गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना था। इनके पिता जी का नाम श्री नारायणदास सक्सैना और माता का नाम श्री मति गंगादेवी था। उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्ष चंदौसी, उत्तर प्रदेश में बिताए। उन्होंने हिंदी में एमए और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। है। उन्होंने एमएमएच कॉलेज, गाजियाबाद में हिंदी विभाग के प्रमुख के रूप में काम किया।
उत्तर प्रदेश में COVID-19 महामारी के दौरान नोएडा में COVID-19 के कारण 29 अप्रैल 2021 को उनकी मृत्यु हो गई।
हिंदी साहित्य में उनके महान कार्यों ने भारत सरकार को उनके नाम पर गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में एक सड़क का नाम रखने के लिए मजबूर किया है। वह पूरे देश में कई काव्य आयोजनों जैसे कवि-सम्मेलनों में दिखाई दिए हैं। वह एक अन्य प्रसिद्ध भारतीय हिंदी कवि डॉ. कुमार विश्वास के पीएचडी सलाहकार भी थे। उन्होंने अनेक बार विदेश यात्राएँ की हैं। और अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के साहित्य सम्मानों द्वारा सम्मानित हुए हैं। कुँअर बेचैन ग़ज़ल लिखने वालों में ताज़े और सजग रचनाकारों में से हैं। उन्होंने आधुनिक ग़ज़ल को समकालीन जामा पहनाते हुए। आम आदमी के दैनिक जीवन से जोड़ा है। यही कारण है कि वे नीरज के बाद मंच पर सराहे जाने वाले कवियों में अग्रगण्य हैं। उन्होंने गीतों में भी इसी परंपरा को कायम रखा है। वे न केवल पढ़े और सुने जाते हैं वरन कैसेटों की दुनिया में भी खूब लोकप्रिय हैं। सात गीत संग्रह, बारह ग़ज़ल संग्रह, दो कविता संग्रह, एक महाकाव्य तथा एक उपन्यास के रचयिता कुँवर बेचैन ने ग़ज़ल का व्याकरण नामक ग़ज़ल की संरचना समझाने वाली एक अति महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी है।
1995 से 2001 तक एम.एम.एच पोस्टगैजुएक्ट कॉलेज गाजियाबाद में हिंदी विभाग में अध्यापन किया और बाद में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए।
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