कुँवर नारायण का जीवन परिचय | Kunwar Narayan ka jeevan parichay | कुँवर नारायण की लघु जीवनी हिन्दी में |


कुँवर नारायण का जीवन परिचय | Kunwar Narayan ka jeevan parichay | कुँवर नारायण की लघु जीवनी हिन्दी में |

नाम: कुँवर नारायण

जन्म: 19 सितंबर 1927

स्थान: उत्तर प्रदेश, भारत

मृत्यु: 15 नवंबर 2017

स्थान: नई दिल्ली, भारत

पिता: विष्णु नारायण

विद्यालय: लखनऊ विश्वविद्यालय

शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)

पेशा: कवि, लेखक

काल: आधुनिक काल

विधा: गद्य और पद्य 

विषय: कविता, खंडकाव्य, कहानी, समीक्षा

आंदोलन: नई कविता,

पुरस्कार: ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान 1995, कुमार आशान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, शलाका सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान, पद्मभूषण, आदि।

रचनाएँ: कविता संग्रह:- चक्रव्यूह 1956, तीसरा सप्तक 1959, परिवेश: हम-तुम 1962, अपने सामने 1979, कोई दूसरा नहीं 1993, इन दिनों 2002, हाशिए के सिवा 2009, कविता केओबे 1993,

खंड काव्य:- आत्मजयी 1965, और वाजश्रवा के सिद्धांत 2008,।

कहानी संग्रह:- आर्कन्स के आस-पास(1973)।

समीक्षा विचार:- आज और आज से पहले 1998, मेरा साक्षात्कार 1999, साहित्य के कुछ अंतर्विषयक प्रसंग 2003,।

संकलन:- कुंवर नारायण-संसार 2002, कुँवर नारायण उपस्थिति 2002, कुँवर नारायण चुनी हुई कविताएँ 2007, कुँवर नारायण- प्रतिनिधि कविताएँ 2008,।

👉कुँवर नारायण पूरी तरह नगर संवेदना के कवि हैं ।

👉कुंवर नारायण की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है उनका खण्ड काव्य 'आत्मजयी' है।

कुँवर नारायण का जीवन परिचय। 

कुँवर नारायण एक हिन्दी साहित्यकार थे। नई कविता आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक  1959 के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुँवर नारायण का जन्म 19 सितम्बर, 1927 को कुंवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के  फ़ैज़ाबाद ज़िले में हुआ था। कुँवर नारायण जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी। किंतु साहित्य में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। 1973 से 1979 तक वे 'संगीत नाटक अकादमी' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुँवर नारायण ने 1975 से 1978 तक  अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में परास्नातक करने के बाद कुंवर नारायण ने पुश्तैनी ऑटोमोबाइल बिजनेस में काम करना शुरू कर दिया था। लेकिन बाद में आचार्य जे. बी. कृपलानी, आचार्य नरेन्द्र देव और सत्यजीत रे से प्रभावित होकर उनकी रूचि साहित्य में बढ़ती गई।

कुँवर नारायण हमारे दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। उनके संग्रह 'परिवेश हम तुम' के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या हम सबके सामने आई। 

कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। छहअक्टूबर ,को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें देश के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया। ज्ञानपीठ के अलावा कुँवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, कुमार आशान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, शलाका सम्मान, मेडल ऑफ़ वॉरसा यूनिवर्सिटी, पोलैंड और रोम के अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान और 2009 में पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।

कुँवर नारायण की रचनाएँ: चक्रव्यूह, तीसरा सप्तक, परिवेश: हम-तुम, आत्मजयी, आकारों के आसपास, अपने सामने, वाजश्रवा के बहाने, कोई दूसरा नहीं' और 'इन दिनों' आदि।

हिंदी के प्रसिद्ध कवि कुंवर नारायण का 15 नवम्बर, 2017 को निधन हो गया। वह 90 वर्ष के थे। मूलरूप से फैजाबाद के रहने वाले कुंवर पिछले 51 साल से साहित्य से जुड़े थे।

कुँवर नारायण  भारतीय साहित्य  के हिन्दी  कवि  थे। उन्होंने व्यापक रूप से पढ़ा और यात्रा की और छह दशकों तक लिखा। वह नई कविता  आंदोलन से जुड़े थे । 

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