मोहन राणा का जीवन परिचय | Mohan Rana ka jeevan parichay | मोहन राणा की लघु जीवनी हिंदी में |
नाम: मोहन राणा
जन्म: 9 मार्च, 1964 ई.
स्थान: दिल्ली, भारत
शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय (स्नातक)
पेशा: कवि, लेखक
पुरस्कार: पद्मानंद साहित्य सम्मान 2008,
पुस्तकें: रेत का पुल, आँखें बंद करके, मानचित्रकार, कविताएँ,
रचनाएँ: कविता संग्रह:- जगह 1994, जैसे जनम कोई दरवाजा 1997, सुबह की डाक 2002, इस छोर पर 2003, पत्थर हो जाएगी नदी 2007, धूप के अँधेरे में 2008, द्विभाषी संग्रह विद आइज़ क्लोज़्ड 2008, द्विभाषी कविता संग्रह ‘पोयम्स’ 2011, रेत का पुल 2012, शेष अनेक 2016, नवीनतम द्विभाषी कविता संग्रह ‘द कार्टोग्राफ़र’ 2020,
कविताएँ:- तीसरा पहर, घर, नक़्शानवीस, पनकौआ, पानी का रंग, आएगा संदीपन यहाँ, चचरी पुल, तब नाव नहीं थी, धोबी, कुछ कहना, चकमक, इस जगह का नाम, अपनी कही बात, भरोसा, यह जगह काफ़ी है, होगा एक और शब्द, साधारण क़मीज़, अधिक मास, कि कहने के लिए,
कवि मोहन राणा का जीवन परिचय।
मोहन राणा भारत के एक हिन्दी भाषा के कवि हैं । उनके हिंदी में दस कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद और प्रकाशन पोएट्री ट्रांसलेशन सेंटर द्वारा किया गया है।
मोहन राणा का जन्म 9 मार्च, 1964 को दिल्ली, भारत में हुआ था। उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। वर्त्तमान में वे ब्रिटेन के बाथ शहर के निवासी है।
उनकी कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभव महसूस किये जा सकते हैं। बाज़ार संस्कृति की शक्तियों के विरुद्ध उनकी सोच भी कविता में उभरकर सामने आती है।उनकी कविताएँ स्थितियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं होती हैं। वे पहले अपने भीतर के कवि और कविता के विषय में एक तटस्थ दूरी पैदा कर लेते हैं। फिर होता है सशक्त भावनाओं का नैसर्गिक विस्फोट। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे सच की एक निरंतर खोज यात्रा कर रहे हों।
मोहन राणा की चुनी हुई कविताओं के संग्रह 'मुखौटे में दो चेहरे' पर कवि आलोचक गोबिन्द प्रसाद ने लिखा। "मोहन राणा की कविता पढ़ते समय यह अहसास सर उठाने लगता है कि इन कविताओं का आस्वाद वैसा कुछ नहीं है जैसे हम हिन्दी की कविताओं में पढ़ते चलते आए हैं। संरचना, शिल्प-संरचना और भाषिक विन्यास में भी ये कविताएँ बहुत कुछ अलग-सी जान पड़ती हैं। ऐसा लगता है इन कविताओं में ‘लिरिकल एलिमेंट’ का जो पारम्परिक रचाव होता है। उसमें निहित अनुभव को एक नये स्थापत्य में ढाल दिया गया है। इस स्थापत्य में बिम्ब को रिप्लेस करके स्मृति और समय के बारीक तारों को छेड़कर एक ऐसा नगमा गूँजता हुआ मालूम होता है जो अपनी स्वप्निलता में एक अगोरत्व को बुनता रहता है। समय की क्रूरता, समाज-संस्थाओं का बिखरता ताना-बाना और व्यापती जा रही अमानुषता और असंवेदनशीलता का सामना करने अथवा रेखांकित करने का कवि का अपना तरीका है।"
मोहन राणा की रचनाएँ: जगह, जैसे जनम कोई दरवाजा, सुबह की डाक, इस छोर पर, पत्थर हो जाएगी नदी, धूप के अँधेरे में, रेत का पुल, आदि।
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