उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर का जीवन परिचय | Uchhangarai Navalshankar Dhebar ka jeevan parichay | यू एन ढेबर की जीवनी हिंदी में |
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर का जीवन परिचय | Uchhangarai Navalshankar Dhebar ka jeevan parichay | यू एन ढेबर की जीवनी हिंदी में |
पूरा नाम: उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर
अन्यनाम: यू.एन. ढेबर (U.N.Dhebar)
जन्म: 21 सितम्बर 1905 ई. भारत
निधन: 11 मार्च 1977 ई.
पेशा: वकील, राजनीतिज्ञ
पार्टी : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद: लोकसभा सदस्य, मुख्यमंत्री सौराष्ट्र राज्य
प्रसिद्धि: स्वतन्त्रता सेनानी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष,
पुरस्कार: पद्म विभूषण
👉सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री कार्यालय 1948 से 1954 तक।
👉भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष 1955 से 1959 तक।
👉संसद के सदस्य 1962 से 1967 तक।
👉सौराष्ट्र क्षेत्र में कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने का श्रेय ढेबर भाई को ही जाता है।
👉1964 में उन्हें परिगणित जाते क्षेत्र कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया।
👉1962 से 1964 तक वे ‘भारतीय आदिम जाति संघ’ के अध्यक्ष रहे।
👉1963 में उन्होंने खादी ग्रामोद्योग कमीशन के अध्यक्ष का पद भी संभाला।
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर का जीवन परिचय |
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर भारतीय स्वतन्त्रता के सेनानी थे। जो 1948 से 1954 तक सौराष्ट्र राज्य के मुख्यमन्त्री रहे। 1955 से 1959 तक वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। 1962 में वे भारत की तीसरी लोकसभा के लिए राजकोट से निर्वाचित हुए थे।
यूएन ढेबर का जन्म 21 सितंबर 1905 को जामनगर से ग्यारह मील दूर गंगजला गांव में हुआ था। यह नागर परिवार अत्यंत गरीब था। फिर भी ढेवर ने राजकोट और मुंबई में अपनी शिक्षा पूरी की। अपनी विश्वविद्यालय शिक्षा के बाद। उन्होंने एक वकील के रूप में कानूनी अभ्यास शुरू किया। 1928 में वकालत करने लगे। अपने पेशे में उन्होंने शीघ्र ही प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। किन्तु गांधीजी के प्रभाव में आकर उन्होंने 1936 में वकालत छोड़ दी और देश सेवा के काम में लग गए।
यू एन ढेबर एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे। 1938 और 1942 के बीच, ढेबर ने राजकोट सत्याग्रह का नेतृत्व किया और व्यक्तिगत सत्याग्रह और परिसंघ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए, उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा तीन बार कैद किया गया। 1938 से 1939 और 1941 के दौरान दो छोटी अवधि के लिए और बाद में 1942 से 1945 तक तीन साल के लिए। 1959 में, ढेबर प्रमुख थे। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की योजना उप-समिति और 1960 से 1961 तक, वह भारत सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष थे । 1962 में वे राजकोट से तीसरी लोकसभा के लिए चुने गये। 1962 में, ढेबर को भारत सरकार के खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। 1973 में, उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ढेबर भाई 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी गिरफ्तार हुए। स्वतंत्रता के बाद काठियावाड़ की रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी। सौराष्ट्र क्षेत्र में कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने का श्रेय ढेबर भाई को ही जाता है। और उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की मृत्यु 11 मार्च 1977 को हुई थी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें