कुवेम्पु का जीवन परिचय | kuvempu ka jeevan parichay | कुप्पल्ली वेंकटप्पा पुट्टप्पा की लघु जीवनी हिंदी में |

 


कुवेम्पु का जीवन परिचय | kuvempu ka jeevan parichay | कुप्पल्ली वेंकटप्पा पुट्टप्पा की लघु जीवनी हिंदी में |

नाम: कुप्पल्ली वेंकटप्पा पुट्टप्पा

उपनाम: कुवेम्पु

जन्म: 29 दिसंबर 1904 ई.

स्थान: कुप्पली, शिवमोगा, कर्नाटक

मृत्यु: 11 नवंबर 1994 ई.

स्थान: मैसूर, कर्नाटक

पिता: वेंकटप्पा गौड़,

माता: सीथम्मा

पत्नी: हेमवती

पेशा: कवि, उपन्यासकार, नाटककार, शिक्षाविद

शैली: गल्प, नाटक

पुरस्कार: राष्ट्रकवि 1964, कर्नाटक रत्न 1992,

पद्म विभूषण 1988, ज्ञानपीठ पुरस्कार 1967, पद्म भूषण 1958, साहित्य अकादमी पुरस्कार 1955,

रचनाएँ: श्रीरामायण दर्शनम्, अमलन कथे, पांचजन्य, अनिकेतन, शूद्र तपस्वी, वाल्मीकीय भाग्य, तपोनंदन, आदि

रचनाएँ: उपन्यास:- कनुरु हेग्गादिति 1936, मालेगल्लाल्ली मदुमगलु 1967, 

नाटक:- जलगारा 1928, बिरुगली 1930, महारात्रि 1931, श्मशान कुरूक्षेत्र 1931, रक्ताक्षी 1932, शूद्र तपस्वी 1944, बेराल्गेकोरल 1947, यमना सोलु, चन्द्रहास, बलिदान, कनीना 1974,

जीवनी:- स्वामी विवेकानन्द 1932, श्री रामकृष्ण परमहंस 1934,

अनुवाद:- गुरुविनोदने देवरेदगे, जनप्रिय वाल्मिकी रामायण,

निबंध:- मैलेनाडिना चित्रगलु  1933

आत्मकथा:- नेनपिन दोणियल्लि,

कविता:- कोलालु 1930, पांचजन्य 1933, नेविल 1934, चित्रांगदा, कलासुंदरी 1934, कवनाकालु 1937, प्रेमा केया 1946, अग्निहंसा 1946, पक्षी हत्यारा 1946, जेनागुवा 1964, प्रीथा क्यू 1967, वसंत 1967, मेघपुर 1947, श्रीरामायण दर्शनम् 1949, आदि।

कुप्पल्ली वेंकटप्पा पुट्टप्पा या कुवेम्पु का जीवन परिचय। 

राष्ट्रकवि कुप्पाली वेंकटप्पा पुटप्पा उर्फ 'केवेम्पु' का जन्म 29 दिसम्बर, 1904 को कर्नाटक में शिवमोगा ज़िले के कुपल्ली नामक गांव में एक कन्नड़ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम 'वेंकटप्पा गौड़' और माँ का नाम 'सीथम्मा' था। वह जब 12 साल के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। उन्होंने 30 अप्रैल, 1937 को 'हेमवती' नाम की युवती से विवाह किया और वैवाहिक जीवन में प्रवेश किया। वे दो पुत्र और दो पुत्रियों के पिता थे।

कुप्पाली वेंकटप्पा पुटप्पा ने अपनी प्राथमिक पढ़ाई घर में ही पूरी की, उसके बाद माध्यमिक शिक्षा मैसूर के हाईस्कूल से पूरी की। उन्होंने 1929 में महाराजा कॉलेज, मैसूर से अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण की और उसके तुरंत बाद उन्होंने महाराजा कॉलेज में ही प्राध्यापक के रूप में नौकरी करके अपने व्यावसायिक जीवन की शुरूआत की। बाद में 1936 में केंद्रीय विद्यालय, बैंगलोर में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम किया और 1946 को फिर से महाराजा कॉलेज में लौट आये। 1956 में उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में चुना गया, जहां उन्होंने 1960 में सेवानिवृत्ति तक अपनी सेवाएँ दीं।

राष्ट्रकवि कुप्पल्ली वेंकटप्पा पुट्टप्पा एक भारतीय कवि, नाटककार, उपन्यासकार और आलोचक थे। उन्हें व्यापक रूप से 20वीं सदी का सबसे महान कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। 'श्री रामायण दर्शनम्' नामक महाकाव्य की वजह से उन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले पहले कन्नड़ लेखक थे। कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान के लिए। कर्नाटक सरकार ने उन्हें 1964 में राष्ट्रकवि  और 1992 में कर्नाटक रत्न से सम्मानित किया। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

कुवेम्पु की मुख्य रचनाएँ: श्रीरामायण दर्शनम्, अमलन कथे, पांचजन्य, अनिकेतन, शूद्र तपस्वी, वाल्मीकीय भाग्य, तपोनंदन, आदि है।

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