लछिराम का जीवन परिचय | lachiram ka jeevan parichay | लछिराम की लघु जीवनी हिंदी में |


लछिराम का जीवन परिचय | lachiram ka jeevan parichay | लछिराम की लघु जीवनी हिंदी में | 

नाम: लछिराम
जन्म: संवत् 1898 
मृत्यु: संवत् 1961
स्थान: बस्ती, उत्तर प्रदेश
पिता: पलटन ब्रह्मभट्ट
रचनाएँ: मुनीश्वर कल्पतरु, महेंद्र प्रतापरस भूषण, रघुबीर विलास, लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, प्रतापरत्नाकर, रामचंद्रभूषण, हनुमंतशतक, सरयूलहरी, कमलानंद कल्पतरु, मानसिंह जंगाष्टक और सियाराम चरण चंद्रिका, आदि है।

कवि लछिराम का जीवन परिचय। 
हिंदी में लछिराम नाम के सात कवियों का उल्लेख मिलता है। जिनमें बहुज्ञात और प्रख्यात हैं।19 वीं शती के अमोढ़ा या अयोध्यावाले लछिराम का जन्म संवत् 1898 में पौष शुक्ल 10 को शेखपुरा जिला बस्ती में हुआ था।
पिता पलटन ब्रह्मभट्ट ब्राह्मण थे। राजा अमोढ़ा इनके पूर्वजों को अयोध्या से अमोढ़ा लाए थे। ये कुछ दिन अयोध्या नरेश महाराज मानसिंह के यहाँ रहे। इस कुल में कवियों की परंपरा विद्यमान थी। संवत् 1904 में लछिराम लामाचकनुनरा ग्रामवासी जिला सुल्तानपुर साहित्यशास्त्री कवि "ईश" के पास अध्ययनार्थ गए। 5 वर्ष वहाँ अध्ययन करने के बाद घर चले आए। फिर इनकी भेंट अयेध्याधिपति राजा मानसिंह 'द्विजदेव' से हुई। उन्होंने इन्हें 'कविराज' की उपाधि दी। और अपना आश्रम भी प्रदान किया। 
बस्ती के राजा शीतलाबख्श सिंह ने इन्हें 500 बीघे का 'चरथी' गाँव दिया। और निवासार्थ मकान भी बनवाया। आज भी इनके वंशज यहाँ रहते हैं। अपने आश्रयदाता राजाओं से कवि को अधिकाधिक द्रव्य, वस्त्राभूषण तथा हाथी, घोड़े आदि पुरस्कार में प्राप्त हुए। लछिराम ने अयोध्या में पाठशाला, राम जानकी का मंदिर और अपने निवासार्थ मकान बनवाया। भाद्रपद कृ. 11 संवत् 1961 को अयोध्या में इनका शरीरांत हुआ।
लछिराम रीतिबद्ध परंपरा के आचार्य कवि हैं। उनकी कृतियों में रस, अलंकार, शब्दशक्ति, गुण और वृत्ति आदि रीतितत्वों का लक्षण, उदाहण सहित, सांगोपांग निरूपण हुआ है। अपनी शास्त्रीय दृष्टि के लिए वह संस्कृत में काव्यप्रकाश, भानुदत्त की रसमंजरी, अप्पयदीक्षित के कुवलयानंद, आदि और हिंदी में  भिखारीदास तथा केशव आदि के ऋणी कहे जा सकते हैं। ढाँचा पुराना होने पर भी उनकी सहज काव्य प्रतिभा रमणीय भाव दृश्य चित्रण करती है।
बस्ती के राजा शीतलाबख्श सिंह से, जो एक अच्छे कवि थे। बहुत सी भूमि पाई। दरभंगा, पुरनिया आदि अनेक राजधानियों में इनका सम्मान हुआ। प्रत्येक सम्मान करने वाले राजा के नाम पर इन्होंने कुछ न कुछ रचना की है। जैसे, मानसिंहाष्टक, प्रताप रत्नाकर, प्रेम रत्नाकर (राजा बस्ती के नाम पर), लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, (दरभंगा नरेश के नाम पर), इत्यादि। इन्होंने अनेक रसों पर कविता की है। समस्यापूर्तियाँ बहुत जल्दी करते थे। वर्तमानकाल में ब्रजभाषा की पुरानी परिपाटी पर कविता करने वालों में ये बहुत प्रसिद्ध हुए हैं।
कवि लछिराम की रचनाएँ: मुनीश्वर कल्पतरु, महेंद्र प्रतापरस भूषण, रघुबीर विलास, लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, प्रतापरत्नाकर, रामचंद्रभूषण, हनुमंतशतक, सरयूलहरी, कमलानंद कल्पतरु, मानसिंह जंगाष्टक और सियाराम चरण चंद्रिका, आदि।

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