शंकरलाल द्विवेदी का जीवन परिचय | Shankarlal Dwivedi ka jeevan parichay | शंकरलाल द्विवेदी की लघु जीवनी हिंदी में |


शंकरलाल द्विवेदी का जीवन परिचय | Shankarlal Dwivedi ka jeevan parichay | शंकरलाल द्विवेदी की लघु जीवनी हिंदी में | 

नाम: शंकरलाल द्विवेदी 

उपनाम: 'शंकर' द्विवेदी

जन्म: 21 जुलाई 1941 ई.

स्थान: बारौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

मृत्यु: 27 जुलाई 1981 ई.

स्थान: मथुरा, उत्तर प्रदेश

पिता: श्री चम्पाराम शर्मा

माता: श्रीमती भौती देवी

पत्नी: श्रीमती कृष्णा द्विवेदी

शिक्षा: आगरा कॉलेज,(स्नातकोत्तर हिंदी में)

पेशा: कवि, लेखक, शिक्षाविद

आंदोलन: राष्ट्रवाद, प्रगतिवाद

काल: आधुनिक काल

विधा: पद्य और गद्य

विषय: कविता, गीत, गीतिका, मुक्तक,  समीक्षा,

रचनाएँ: इस तिरंगे को कभी झुकने न दोगे 1965, युद्ध केवल युद्ध 1966, काश्मीर के लिए न शम्सीरें तानो 1964, शीष कटते हैं कभी झुकते नहीं 1965, मुर्दा श्वाँस जिया करतीं हैं 1962, शिव-शंकर तुझे पुकारे 1963, प्राणों से प्रिय जिन्हें वतन 1965, धुआँ ही धुआँ है, धुआँ भर गया चन्दन-वन में 1967, युवक तू सोया हुआ है, खोजने होंगे हमें सत्वर, जय जन्मभूमि बोली, टीका करो, लो रक्त का, माथे की बिंदी है हिंदी, सत्य की हत्या, निठुर घन से, प्यार पनघटों को दे दूँगा, ताजमहल, गाँधी'-आश्रम, विधवा, गंगा-स्नान, हेमंती संध्या और गाँव, मेरी उमर तुम्हें लग जाती, नशा, आदि।

कवि शंकरलाल द्विवेदी का जीवन परिचय |

शंकरलाल द्विवेदी का जन्म 21 जुलाई, 1941 को ब्रिटिश भारत में उत्तर प्रदेश ज़िला अलीगढ़ ग्राम-बारौली में हुआ था।शंकरलाल द्विवेदी का पैतृक गाँव उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले में स्थित गाँव-जान्हेरा है। इनके पिता श्री चम्पाराम शर्मा और माता का नाम श्रीमती भौती देवी की कुल नौ संतान थी। शंकरलाल द्विवेदी इनके पिता श्री चम्पाराम शर्मा  द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवारत रहे। आय के सीमित संसाधनों के कारण इतने बड़े परिवार का पालन-पोषण उनके लिए अत्यधिक चुनौतीपूर्ण था। उनके अनुज डॉ. महावीर द्विवेदी भी हिंदी व  ब्रजभाषा के ख्याति प्राप्त कवि थे।

शंकरलाल द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गाँव जान्हेरा तथा माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा-दीक्षा निकटवर्ती कस्बे अन्डला में स्थित मदनमोहन मालवीय इंटर कॉलेज में संपन्न हुई। सन 1958 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर श्री द्विवेदी ने श्री वार्ष्णेय महाविद्यालय, अलीगढ़ से सन 1960 में कला-स्नातक की उपाधि अर्जित की। तदोपरांत उन्होंने आगरा कॉलेज, आगरा में प्रवेश ले कर सन 1962 में हिंदी-स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की। शंकरलाल द्विवेदी  जीविकोपार्जन हेतु अनेक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे। स्नातकोत्तर के पश्चात् उन्होंने सन 1966 में एक-वर्ष तक आगरा कॉलेज, आगरा तदोपरांत राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, आगरा में हिंदी-अध्यापन कार्य किया। इसके पश्चात् वे सन 1966 से 1971 तक श्री किरोड़ी लाल जैन इंटर कॉलेज, सासनी, हाथरस में हिंदी प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहे। और आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध श्री ब्रज-बिहारी डिग्री कॉलेज, कोसी कलाँ, मथुरा, उत्तर प्रदेश में हिंदी प्राध्यापक तथा अग्रिम इसी संस्थान में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद पर आसीन हुए। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी श्री द्विवेदी, एक उत्कृष्ट कविर्मनीषी होने के साथ-साथ उच्च कोटि के शिक्षाविद भी थे। समकालीन कवियों के मध्य उन्हें कवि सम्मेलनों में ख़ासी लोकप्रियता प्राप्त थी। अपनी ओजस्वी काव्य-प्रस्तुतियों के कारण कवि सम्मेलनों के श्रोता-वर्ग में भी वे अत्यन्त लोकप्रिय थे। श्री द्विवेदी आग  और राग दोनों स्वरों के सर्जक रहे हैं। वीर रस में काव्य-दक्ष श्री द्विवेदी को शृंगार रस में भी दक्षता हासिल थी। संयोग तथा  वियोग दोनों ही श्रृंगारिक पक्षों पर उनकी लेखनी समानाधिकृत रूप से समृद्ध थी।

शंकरलाल द्विवेदी की रचनाएँ: इस तिरंगे को कभी झुकने न दोगे 1965, युद्ध केवल युद्ध 1966, काश्मीर के लिए न शम्सीरें तानो 1964, शीष कटते हैं कभी झुकते नहीं 1965, मुर्दा श्वाँस जिया करतीं हैं 1962, युवक तू सोया हुआ है, खोजने होंगे हमें सत्वर, जय जन्मभूमि बोली, टीका करो, लो रक्त का, माथे की बिंदी है हिंदी, सत्य की हत्या, निठुर घन से, प्यार पनघटों को दे दूँगा, ताजमहल, गाँधी'-आश्रम, विधवा, गंगा-स्नान, हेमंती संध्या और गाँव, मेरी उमर तुम्हें लग जाती, नशा, आदि।



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