सियारामशरण गुप्त का जीवन परिचय | Siyaramsharan Gupt ka jeevan parichay | सियारामशरण गुप्त की लघु जीवनी हिंदी में |


सियारामशरण गुप्त का जीवन परिचय | Siyaramsharan Gupt ka jeevan parichay | सियारामशरण गुप्त की लघु जीवनी हिंदी में | 

नाम: सियारामशरण गुप्त 

जन्म: 4 सितंबर 1895 ई.

स्थान: चिरगाँव, झांसी, उत्तर प्रदेश 

मृत्यु: 29 मार्च 1963 ई.

पिता: सेठ रामचरण गुप्ता,

माता: श्रीमती कौशल्या बाई

पेशा: कवि, कथाकार और निबन्ध लेखक

भाषा: हिंदी, गुजराती, अंग्रेज़ी और उर्दू 

पुरस्कार: 1941 सुधाकर पदक, 1962 सरस्वती हीरक जयन्ती,

रचनाएँ: खण्ड काव्य:- मौर्य विजय 1914, अनाथ 1917, आर्द्रा1927, विषाद 1925, दूर्वा दल 1924, आत्मोत्सर्ग 1931, पाथेय 1933, मृण्मयी 1936, बापू 1937, उन्मुक्त 1940, दैनिकी 1942, नकुल 1946, सुनन्दा और गोपिका।

कहानी संग्रह:- मानुषी

नाटक:- पुण्य पर्व

अनुवाद:- गीता सम्वाद

नाट्य:- उन्मुक्त गीत

कविता संग्रह:- अनुरुपा तथा अमृत पुत्र

काव्यग्रन्थ:- दैनिकी नकुल, नोआखली में, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी तथा आत्मोसर्ग।

उपन्यास:- अन्तिम आकांक्षा तथा नारी और गोद।

निबन्ध संग्रह:- झूठ-सच।

पद्यानुवाद:- ईषोपनिषद, धम्मपद और भगवत गीता

👉'मौर्य विजय' इनकी प्रथम रचना सन् 1914 में लिखी।

👉सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि  मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे।

सियारामशरण गुप्त का जीवन परिचय।

श्री सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। कवि, कथाकार और निबन्ध लेखक के रूप में उन्होंने अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था। 

सियारामशरण गुप्त का जन्म सेठ रामचरण कनकने के परिवार में 4 सितंबर, 1895 को चिरगाँव, झांसी में हुआ था। इनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्ता और माता का नाम श्रीमती कौशल्या बाई था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने घर में ही गुजराती, अंग्रेजी और उर्दू भाषा सीखी। सन् 1929 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और कस्तूरबा गाँधी के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। सन् 1940 में चिरगांव में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का स्वागत किया। वे सन्त विनोबा भावे के सम्पर्क में भी आये। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया था अतः वे दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। 1914 में उन्होंने अपनी पहली रचना मौर्य विजय लिखी। सन् 1910 में इनकी प्रथम कविता 'इन्दु' प्रकाशित हुई। 

सियारामशरण गुप्त की भाषा शैली सरल एवं व्यावहारिक शब्दावली लिए हुए हैं। इनकी भाषा मुख्यतः खड़ी बोली है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली यदा-कदा दृष्टिगोचर होती है। वर्णनात्मक, चित्रात्मक इन्होने विचारात्मक तथा भावात्मक शैली को अपनाया है। 

सियारामशरण गुप्त को दीर्घकालीन साहित्य सेवाओं के लिए सन् 1962 में 'सरस्वती हीरक जयन्ती' के अवसर पर सम्मानित किया गया। 1941 में उन्हें नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा "सुधाकर पदक' प्रदान किया गया। उनकी समस्त रचनाएं पांच खण्डों में संकलित कर प्रकाशित हैं।

सियारामशरण गुप्त जी लम्बी बीमारी के बाद 29 मार्च 1963 को उनका निधन हो गया।

सियारामशरण गुप्त की रचनाएँ: मौर्य विजय, विषाद, आद्रा, अनाथ, उन्मुक्त, गोपिका, मृण्मयी, पुण्य पर्व, गोद, नारी, मानुषी, अन्तिम आकांक्षा, झूठ-सच आदि।

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