श्री कृष्ण सिंह का जीवन परिचय | Shri Krishna Singh ka jeevan parichay | डॉ श्रीकृष्ण सिंह की लघु जीवनी हिंदी में |
श्री कृष्ण सिंह का जीवन परिचय | Shri Krishna Singh ka jeevan parichay | डॉ श्रीकृष्ण सिंह की लघु जीवनी हिंदी में |
नाम: कृष्ण सिंह
उपनाम: बिहार केसरी, श्री बाबू
जन्म: 21 अक्टूबर 1887 ई.
स्थान: शेखपुरा, भारत
निधन: 31 जनवरी 1961ई.
स्थान: पटना, भारत
पिता: बाबू हरिहर सिंह
शिक्षा: एम.ए, लॉ (वकालत)
विद्यालय: पटना विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय,
प्रसिद्धि: बिहार केसरी
पेशा: वकील, राष्ट्रवादी, राजनेता, शिक्षाविद्, प्रशासक
पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
संगठन की स्थापना: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जमशेदपुर
जेल यात्रा: कृष्ण सिंह, साइमन कमीशन के बहिष्कार तथा नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जेल गये थे।
👉बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री 15 अगस्त 1947 से 31 जनवरी 1961 तक।
👉बिहार के दूसरे वित्त मंत्री 5 जुलाई 1957 से 31 जनवरी 1961 तक।
👉बिहार प्रांत के दूसरे प्रधानमंत्री 20 जुलाई 1937 से 31 अक्टूबर 1939 तक।
👉संविधान सभा के सदस्य 9 दिसंबर 1946 से 26 जनवरी 1950 तक।
👉बिहार विधान सभा के सदस्य 1952 से 1961 तक।
श्री कृष्ण सिंह का जीवन परिचय।
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्री कृष्ण सिन्हा का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को बंगाल प्रेसीडेंसी के मुंगेर जिले के बरबीघा के माउर गांव में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबू हरिहर सिंह था। जब वह पाँच वर्ष के थे तब उनकी माँ की प्लेग से मृत्यु हो गई। उनकी शिक्षा गांव के स्कूल और मुंगेर के जिला स्कूल में हुई। 1906 में वे पटना कॉलेज में शामिल हुए। जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय का एक सहयोगी था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री और फिर पटना विश्वविद्यालय से कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। और 1915 से मुंगेर में अभ्यास करना शुरू कर दिया। इस बीच, उन्होंने शादी कर ली। किंतु गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन आरंभ करने पर इन्होंने वकालत छोड़ दी और शेष जीवन सार्वजानिक कार्यों में ही लगाया। साइमन कमीशन के बहिष्कार और नमक सत्याग्रह में भाग लेने पर ये गिरफ्तार किए गए। कृष्ण सिंह बड़े ओजस्वी अधिवक्ता थे। ये 1937 में केन्द्रीय असेम्बली के और 1937 में ही बिहार असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1937 के प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल में ये बिहार के मुख्यमंत्री बने।1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर कृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल ने त्याग पत्र दे दिया। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए गांधी जी ने सिंह को बिहार का प्रथम सत्याग्रही नियुक्त किया था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी ये जेल में बंद रहे।
श्री कृष्ण सिंह या सिन्हा जिन्हें श्री बाबू के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय राज्य बिहार के पहले मुख्यमंत्री 1946 से 1961 तक थे। द्वितीय विश्व युद्ध की अवधि को छोड़कर, सिन्हा 1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल के समय से लेकर 1961 में अपनी मृत्यु तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। देश रत्न राजेंद्र प्रसाद और बिहार विभूति अनुग्रह नारायण के साथ कृष्ण सिंह को 'आधुनिक बिहार के वास्तुकारों' में माना जाता है। उन्होंने बैद्यनाथ धाम मंदिर में दलितों के प्रवेश का भी नेतृत्व किया। जमींदारी प्रथा को ख़त्म करने वाले वे देश के पहले मुख्यमंत्री थे। ब्रिटिश भारत में उन्हें कुल मिलाकर लगभग आठ वर्षों तक कारावास की सजा काटनी पड़ी। कृष्ण सिंह की जन सभाओं में उन्हें सुनने के लिए बहुत से लोग आते थे। सार्वजनिक भाषणों में उनकी "शेर जैसी दहाड़" के लिए उन्हें 'बिहार केसरी' के नाम से जाना जाता था। उनके करीबी दोस्त और गांधीवादी बिहार विभूति एएन सिन्हा ने अपने निबंध मेरे श्री बाबू में लिखा है कि, "1921 से, बिहार का इतिहास श्री बाबू के जीवन का इतिहास रहा है" । पटना स्थित कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में बिहार केसरी श्री बाबू को भारत रत्न से सम्मानित करने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी अपनाया गया ।
कृष्ण सिंह ने 1946 से 31 जनवरी 1961 को 73 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक लगातार बिहार की सेवा की।
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