घनश्यामदास बिड़ला का जीवन परिचय | | Ghanshyam Das Birla ka jeevan parichay | घनश्यामदास बिड़ला की लघु जीवनी हिंदी में |

 


घनश्यामदास बिड़ला का जीवन परिचय | | Ghanshyam Das Birla ka jeevan parichay | घनश्यामदास बिड़ला की लघु जीवनी हिंदी में | 

नाम: घनश्यामदास बिड़ला

उपनाम: जी.डी. बिड़ला

जन्म: 10 अप्रैल 1894 ई.

स्थान: पिलानी, राजस्थान, भारत

मृत्यु: 11 जून 1983 ई.

स्थान: मुंबई, महाराष्ट्र

पिता: बलदेव दास बिड़ला

माता: योगेश्वरी देवी

पत्नी: दुर्गा देवी, महादेवी बिड़ला

स्थापित संगठन: बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, 

पेशा: उद्योगपति, स्वतंत्रता सेनानी

प्रसिद्ध: उद्योगपति

पुरस्कार: पद्म विभूषण 1957

रचनाएं: रूपये की कहानी, बापू, जमनालाल बजाज, इन द शेडो ऑफ़ द महात्मा, आदि।

👉1927 में "इण्डियन चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इन्डस्ट्री" की स्थापना की।

👉1932 में हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष बने।

घनश्यामदास बिड़ला का जीवन परिचय | 

घनश्याम दास बिड़ला एक सच्चे स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन के कट्टर समर्थक थे। घनश्याम दास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल 1894 को झुंझुनू जिले के पिलानी कस्बे में, राजपुताना के नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र में , मारवाड़ी माहेश्वरी समुदाय के सदस्य के रूप में हुआ था। उनके पिता बलदेवदास बिड़ला थे। माता का नाम योगेश्वरी देवी था। 1884 में बलदेव दास बिड़ला व्यापार के नए रास्ते की तलाश में बंबई गए। उन्होंने 1884 में बंबई में शिव नारायण बलदेव दास और 1897 में कलकत्ता में बलदेव दास जुगल किशोर नाम से अपनी फर्म स्थापित की। फर्मों ने चांदी, कपास, अनाज और अन्य वस्तुओं का व्यापार शुरू किया। उनके बाद 4 बेटे थे। जुगल किशोर, रामेश्वर दास, घनश्याम दास और ब्रज मोहन ने राजगद्दी संभाली। घनश्याम दास चारों भाइयों में सबसे सफल थे। शिक्षा की बात करें तो घनश्याम दास मात्र पांचवी कक्षा तक ही पढ़ पाए थे। लेकिन व्यापार में वह पढ़े लीखों को पीछे छोड़ने की क्षमता रखते थे।

घनश्याम दास बिड़ला ने कलकत्ता में व्यापार जगत में प्रवेश किया। 1912 में किशोरावस्था में ही घनश्याम दास बिड़ला ने अपने ससुर एम. सोमानी की मदद से दलाली का व्यवसाय शुरू कर दिया। 1918 में घनश्याम दास बिड़ला ने ‘बिड़ला ब्रदर्स’ की स्थापना की। कुछ ही समय बाद घनश्याम दास बिड़ला ने दिल्ली की एक पुरानी कपड़ा मिल ख़रीद ली, उद्योगपति के रूप में यह घनश्याम दास बिड़ला का पहला अनुभव था। 1919 में घनश्याम दास बिड़ला ने जूट उद्योग में भी क़दम रखा।

उन्होंने अपने पैत्रक स्थान पिलानी में भारत के सर्वश्रेष्ट निजी तकनीकी संस्थान बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी की स्थापना की। इसके अलावा हिन्दुस्तान टाइम्स एवं हिन्दुस्तान मोटर्स की नींव डाली। कुछ अन्य उद्योगपतियों के साथ मिलकर उन्होने सन् 1927 में "इण्डियन चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इन्डस्ट्री" की स्थापना की। घनश्याम दास बिड़ला एक सच्चे स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन के कट्टर समर्थक थे तथा महात्मा गांधी की गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के लिये तत्पर रहते थे। इन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए आर्थिक सहायता दी। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया तथा 1932 में हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष बने।

श्री घनश्यामदास बिड़ला भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी.के.के.एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे। इस समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है। जबकि अग्रणी कंपनियाँ 'ग्रासिम इंडस्ट्रीज' और 'सेंचुरी टेक्सटाइल' हैं। ये स्वाधीनता सेनानी भी थे। तथा बिड़ला परिवार के एक प्रभावशाली सदस्य थे। वे गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। भारत सरकार ने सन् 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। 

बिड़ला शाकाहारी थे। 11 जून 1983 को 89 वर्ष की आयु में लंदन में उनका निधन हो गया। लंदन के हूप लेन स्थित गोल्डर्स ग्रीन श्मशान में उनका एक स्मारक है । इसमें एक शिलालेख के साथ बगीचों को देखने वाली एक बड़ी मूर्ति शामिल है।

घनश्याम दास बिड़ला द्वारा लिखित रचनाएं:- रूपये की कहानी, बापू, जमनालाल बजाज, इन द शेडो ऑफ़ द महात्मा, समृद्धि के रास्ते, डायरी के कुछ पन्ने, आदि।



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