गोपालकृष्ण पुराणिक का जीवन परिचय | Gopal Krishna Puranik ka jeevan parichay | गोपालकृष्ण पुराणिक की लघु जीवनी हिंदी में


गोपालकृष्ण पुराणिक का जीवन परिचय | Gopal Krishna Puranik ka jeevan parichay | गोपालकृष्ण पुराणिक की लघु जीवनी हिंदी में 

नाम: गोपालकृष्ण पुराणिक

जन्म: 9 जुलाई 1900 ई.

मौत: 31 अगस्त 1965 ई.

स्थान: पोहरी, शिवपुरी, मध्य प्रदेश

पेशा: स्वतंत्रता सेनानी

गोपालकृष्ण पुराणिक का जीवन परिचय |

गोपालकृष्ण पुराणिक भारत के स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षाविद एवं पत्रकार थे। उन्हें भारतीय ग्रामीण पत्रकारिता का जनक माना जाता है। गोपालकृष्ण पुराणिक का जन्म आषाढ़ शुक्ल 12 संवत 1957 अर्थात 9 जुलाई 1900 में शिवपुरी जिले के ग्राम पोहरी में हुआ था। इनके पितामह पंडित वासुदेव पुराणिक संस्कृत और ज्योतिष के बड़े विद्वान थे। कालांतर में पत्नी और पुत्र की मृत्यु के पश्चात उन्होंने अपना जीवन पूर्णतः देश को समर्पित कर दिया। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य कर जनजागरण का प्रयास किया।मुंबई से इन्होंने रूरल इंडिया नाम के समाचार पत्र निकाला। कालांतर में एनी बेसेंट तथा महात्मा गांधी के संपर्क में आने पर उन्होंने विदेश जाकर पत्रकारिता सीखने का इरादा छोड़कर भारत में ही रहकर गांधीवादी सिद्धांतों के प्रचार प्रसार में अपना जीवन समर्पित कर दिया। इसी क्रम में 1921 में उन्होंने पोहरी में एक स्कूल खोला जहां गांधीवादी विचारधारा की शिक्षा दी जाती थी। सूत काटना, चरखा चलाना जैसी शिक्षा और रोजगारपरक कौशल बच्चों को सिखाए जाते थे। गांधी जी के आंदोलन में भाग लेने के कारण ही 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन मे भाग लेने के कारण उन्हें 1 वर्ष का कारावास भोगना पड़ा। सन् 1931 से पोहरी जागीर के विभिन्न ग्राम समूहों में ग्राम सुधार केन्द्र खोलकर उनके सर्वांगीण विकास का कार्य किया जा रहा था। धीरे धीरे वह बढ़कर ग्वालियर तक पहुॅच गया था। सन् 1938 से बम्बई से रूरल इंडिया नाम की मासिक पत्रिका अंग्रेजी में ग्राम सुधार विषय पर प्रकाशित की जा रही थी। जिससे पूरे देश में चल रहे ग्राम विकास के कार्यो व प्रयोगों में निकट का सम्बंध स्थापित हो गया था।

आदर्श  सेवा संघ ने 1 जनवरी 1944 से ग्राम विश्वविद्यालय स्थापित करने का लक्ष्य बनाकर कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण हेतु पोहरी में संघ के मुख्यालय पर ”ग्राम कार्यकर्ता प्रशिक्षण केन्द्र’’ चलाने का निश्चय किया था। जो ग्राम विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रारम्भ था। रूरल इंडिया के माध्यम से प्रचार कर तथा पत्र लिखकर देश के सभी प्रांतो से प्रशिक्षण हेतु कार्यकर्ता बुलाये गए प्रथम चरण में दो मास का प्रशिक्षण रखा गया। प्रशिक्षण वैज्ञानिक और उन्नत कृषि पद्वति, पशु नस्ल सुधार, ग्रह उद्योगों का विकास, ग्राम शिक्षा, कताई बुनाई, कागज बनाना, माचिस बनाना और मधुमक्खी पालन आदि के सम्बंध में था।

भारत छोड़ो आंदोलन में भी इन्होंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। आजादी के बाद विभिन्न सामाजिक संस्थानों से जुड़कर इन्होंने समाजसेवा के अनेक कार्य किए। 31 अगस्त 1965 को इनकी मृत्यु हो गई।


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