गोविन्द बल्लभ पन्त का जीवन परिचय | Govind Ballabh Pant ka jeevan parichay | जी॰बी॰ पन्त की लघु जीवनी हिंदी में |


गोविन्द बल्लभ पन्त का जीवन परिचय | Govind Ballabh Pant ka jeevan parichay | जी॰बी॰ पन्त की लघु जीवनी हिंदी में | 

नाम: गोविन्द बल्लभ पन्त

उपनाम: जी. बी. पन्त

जन्म: 10 सितम्बर 1887 ई.

स्थान: खूण्ट, अल्मोड़ा, भारत 

मृत्यु: 7 मार्च 1961 ई.

स्थान: नई दिल्ली, भारत

पिता: मनोरथ पंत

माता: गोविंदी बाई 

पत्नी: श्रीमती गंगा देवी

शिक्षा: बी.ए, वकालत

विद्यालय: इलाहाबाद विश्वविद्यालय

पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

पेशा: वकालत, स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता,

पुरस्कार: भारत रत्न 1957

पद: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के गृहमंत्री

रचनाएँ: वरमाला, राजमुकुट, अंगूर की बेटी, 

👉उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री 26 जनवरी 1950 से 27 दिसम्बर 1954 तक।

👉भारत के 5वें गृह मन्त्री 10 जनवरी 1955 से 7 मार्च 1961 तक।

👉सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।

गोविन्द बल्लभ पन्त का जीवन परिचय | 

गोविंद बल्लभ पंत या जी. बी. पन्त एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा जिले के पास खूंट गांव में हुआ था । उनका जन्म एक मराठी  करहड़े ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जो वर्तमान उत्तरी कर्नाटक से  कुमाऊं क्षेत्र में आकर बस गए थे। उनकी माँ का नाम गोविंदी बाई था। उनके पिता मनोरथ पंत एक सरकारी अधिकारी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने की। 1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। गोविन्द बल्लभ पन्त ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। 1907 में बी.ए, और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से "लैम्सडेन अवार्ड" दिया गया। 1910 में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू कर दी। 

उन्होंने 1914 में ब्रिटिश राज के खिलाफ सक्रिय कार्य शुरू किया। दिसम्बर 1921 में वे गान्धी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये। और आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत की विधान सभा के लिए चुने गए।

9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ गोविन्द बल्लभ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। 1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया। और मई 1930 में देहरादून जेल की हवा भी खायी। 17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त अथवा यू०पी० के पहले मुख्य मन्त्री बने। इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त (यू०पी०) के मुख्य मन्त्री रहे। जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के भी वे 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे।

सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें गृह मन्त्रालय, भारत सरकार के प्रमुख का दायित्व दिया गया। भारत के गृह मन्त्री रूप में उनका कार्यकाल सन 1955 से लेकर 1961 में उनकी मृत्यु होने तक रहा।

पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त का 7 मार्च 1961 को हृदयाघात से जूझते हुए उनकी मृत्यु हो गयी।

पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय  राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश राज्य के प्रथम मुख्य मन्त्री और भारत के चौथे गृहमन्त्री थे। सन 1957 में उन्हें भारतरत्न  से सम्मानित किया गया। गृहमन्त्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था।

टिप्पणियाँ

Read more

भारत के सभी प्रधानमंत्रियों की संक्षिप्त जीवनी छवि।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जीवन

महान भारतीय वैज्ञानिक सी एन आर राव के पुरस्कार | Indian Scientist CNR Rao Award |