चन्दन हजुरी का जीवन परिचय | Chandan Hajuri ka jeevan parichay | चाखि खुण्टिआ की लघु जीवनी हिंदी में |
चन्दन हजुरी का जीवन परिचय | Chandan Hajuri ka jeevan parichay | चाखि खुण्टिआ की लघु जीवनी हिंदी में |
नाम: चन्दन हजुरी
उपनाम: चाखि खुण्टिआ
जन्म: 7 जनवरी 1827 ई.
मृत्यु: 1870 ई.
पिता: रघुनाथ खुण्टिआ
माता: कमलावती
चन्दन हजुरी का जीवन परिचय।
चन्दन हजुरी या चाखि खुण्टिआ पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी तथा कवि थे। जिन्होने 1857 के भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। उनका जन्म जगन्नाथ पुरी में ही हुआ था। उनका शारीरिक बल असाधारण था।
चंदन हजूरी का जन्म 1827 में सांबा दशमी के शुभ दिन पर हुआ था। जो 7 जनवरी 1827 को ओडिशा के पुरी में एक उत्कल ब्राह्मण परिवार में पिता रघुनाथ खुण्टिआ उर्फ़ भीमसेन हजूरी और माता कमलावती के घर हुआ था। 12 साल की उम्र में उनका विवाह सुंदरमणि से हुआ था। छोटी उम्र में उन्होंने ओडिया, संस्कृत और हिंदी साहित्य का अध्ययन किया। जिससे वह जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कर्तव्यों का कुशलता से पालन कर सके। उन्होंने अखाड़ों में पारंपरिक कुश्ती भी सीखी और बाद में, पुरी में युवाओं को कुश्ती और सैन्य अभ्यास सिखाया।
उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह से पहले जगन्नाथ मंदिर के पंडा के रूप में देश भर में यात्रा करते हुए सिपाहियों को संगठित करने और विद्रोह को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विद्रोह के समय, वह एक उत्तरी सैन्य स्टेशन पर तैनात थे। और उन्होंने अंग्रेजों के साथ बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी। उन्हें विद्रोह के दौरान विद्रोही नेतृत्व के साथ सीधा संपर्क बनाए रखने के लिए जाना जाता था। बाद में, उन्हें गया में गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी संपत्ति ईस्ट इंडियन कंपनी सरकार ने जब्त कर ली। 1858 में, अन्य विद्रोहियों के साथ 1858 की रानी की घोषणा के तहत माफी की पेशकश के बाद हजूरी को जेल से रिहा कर दिया गया।
चाखि खुण्टिआ ने अपना शेष जीवन पुरी में आध्यात्मिक और साहित्यिक गतिविधियों में समर्पित करके बिताया। उन्होंने जगन्नाथ को समर्पित कई लोकप्रिय कविताएँ और गीत लिखे। उन्होंने लक्ष्मीबाई की याद में मनुबाई नामक एक हस्तरेखा पांडुलिपि भी लिखी। पंडित चन्दन हजुरी 1870 में पुरी में उनकी मृत्यु हो गई।
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