चित्तरंजन दास का जीवन परिचय | Chittaranjan Das ka jeevan parichay | देशबन्धु चित्तरंजन दास की लघु जीवनी हिंदी में |
चित्तरंजन दास का जीवन परिचय | Chittaranjan Das ka jeevan parichay | देशबन्धु चित्तरंजन दास की लघु जीवनी हिंदी में |
नाम: चित्तरंजन दास
उपनाम: देशबन्धु
जन्म: 5 नवम्बर 1870 ई.
स्थान: कोलकाता, ब्रिटिश भारत
मृत्यु: 16 जून 1925 ई.
स्थान: दार्जिलिंग, ब्रिटिश भारत
पिता: भुबनमोहन दास
माता: निस्तारिणी देवी
पत्नी: बसन्ती देवी
पदवी: देशबन्धु
पेशा: वकील, कवि, पत्रकार, राजनीतिज्ञ
आंदोलन: असहयोग आंदोलन
स्थापित संगठन: स्वराज पार्टी
पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, स्वराज पार्टी,
पद: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
प्रसिद्धि: राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधि-शास्त्री
👉चित्तरंजन दास 'अलीपुर षड़यंत्र काण्ड' 1908 के अभियुक्त अरविन्द घोष के बचाव के लिए बचाव पक्ष के वकील थे।
चित्तरंजन दास का जीवन परिचय।
देशबन्धु चित्तरंजन दास सुप्रसिद्ध भारतीय नेता, राजनीतिज्ञ, वकील, कवि, पत्रकार तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के युगांतकारी थे। ये महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधि-शास्त्री थे। उन्होंने कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों के मुकद्दमे भी लड़े। उनको सम्मान पूर्वक ‘देशबंधु’ कहा जाता था। चित्तरंजन दास का जन्म कलकत्ता में 5 नवंबर 1870 को एक उच्च मध्यमवर्गीय हिंदू बैद्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भुवन मोहन दास, कलकत्ता हाई कोर्ट के एक जाने-माने वकील थे। और माँ का नाम निस्तारिणी देवी था।
सन् 1890 में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्. होने के लिए इंग्लैंड गए। और सन् 1892 में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटे। शुरू में तो वकालत ठीक नहीं चली। पर कुछ समय बाद खूब चमकी और इन्होंने अपना तमादी कर्ज भी चुका दिया।
1894 में दास ने अपनी वकालत छोड़ दी, और ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन के दौरान राजनीति में चले गये। उन्होंने फिर से मामला उठाया और 1909 में अलीपुर बम मामले में शामिल होने के आरोप में अरबिंदो घोष का सफलतापूर्वक बचाव किया। 1908 में अलीपुर बम मामले में, श्री अरबिंदो घोष के बचाव पक्ष के वकील के रूप में चित्तरंजन दास ने यह समापन वक्तव्य दिया। वकालत में इनकी कुशलता का परिचय लोगों को सर्वप्रथम 'वंदेमातरम्' के संपादक श्री अरविंद घोष पर चलाए गए राजद्रोह के मुकदमे में मिला। इस मुकदमे में उन्होंने जो निस्स्वार्थ भाव से अथक परिश्रम किया। समस्त भारतवर्ष में 'राष्ट्रीय वकील' नाम से इनकी ख्याति फैल गई।
इन्होंने सन् 1906 में कांग्रेस में प्रवेश किया। सन् 1917 में ये बंगाल की प्रांतीय राजकीय परिषद् के अध्यक्ष हुए।
असहयोग आंदोलन में जिन विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए थे उनके लिए इन्होंने ढाका में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की।
1921 ई. में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन के लिए दस लाख स्वयंसेवक माँगे थे।उसकी पूर्ति के लिए इन्होंने प्रयत्न किया।
आंदोलन की मजबूत होते देखकर ब्रिटिश सरकार ने इसे अवैध करार दिया। ये सपत्नीक पकड़े गए और दोनों को छह छह महीने की सजा हुई। सन् 1921 ई. में अहमदाबाद कांग्रेस के ये अध्यक्ष चुने गए। लेकिन ये उस समय जेल में थे। इनका अध्यक्षीय भाषण श्रीमती सरोजिनी नायडू ने पढ़कर सुनाया। ये जब छूटकर आए उस समय आंदोलन लगभग समाप्त हो चुका था। अतएव इन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। और स्वराज दल की स्थापना 1923 में की।
सन् 1924 से 1925 में इन्होंने कलकत्ता नगर महापालिका में अपने पक्ष के काफी लोग घुसाए और स्वयं मेयर हुए।
सन् 1925 में उपर्युक्त सरकारी विज्ञप्ति की मुख्य धाराएँ बंगाल क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल में सम्मिलित की गईं। स्वराज्य दल ने बिल अस्वीकार कर दिया किंतु सरकार ने अपने विशेष अधिकार से कानून पास करा लिया। सरकार ने इसे सहयोग की ओर पहला कदम समझा। इस दृष्टि से दोनों पक्षों में कुछ वार्ता शुरू होने की संभावना समझी जा रही थी। कि जिस वक्त देशबंधु चितरंजन दास का राजनैतिक जीवन चरम पर था। उसी वक्त काम के बोझ तले उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इस बीच महात्मा गांधी भी खुद उनसे मिलने दार्जिलिंग आए थे। 16 जून 1925 को तेज बुखार के कारण दार्जिलिंग में निधन हो गया।
श्री चितरंजनदास के व्यत्तित्व के कई पहलू थे। वे उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ तथा नेता तो थे ही, वे बँगला भाषा के अच्छे कवि तथा पत्रकार भी थे। बंगाल की जनता इनके कविरूप का बहुत आदर करती थी।
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