दामोदर हरी चापेकर का जीवन परिचय | damodar hari chapekar ka jeevan parichay | चापेकर बन्धु की लघु जीवनी हिंदी में |


दामोदर हरी चापेकर का जीवन परिचय | damodar hari chapekar ka jeevan parichay | चापेकर बन्धु की लघु जीवनी हिंदी में |

नाम: दामोदर हरी चापेकर

उपनाम: चापेकर बन्धु

जन्म: 25 जून 1869 ई.

स्थान: पुणे, महाराष्ट्र

मृत्यु: 18 अप्रॅल 1898 ई.

पिता: हरिपंत चापेकर

माता: लक्ष्मीबाई

भाई: बालकृष्ण चापेकर, वासुदेव चापेकर

प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी

👉दामोदर हरि चाफेकर ने 22 जून 1897 को रैंड को और उसके सहायक लेफ्टिनेंट आयस्टर को गोली मारकर हत्या कर दी। 

दामोदर हरी चापेकर का जीवन परिचय। 

दामोदर हरी चापेकर या चापेकर बन्धु का नाम भारत के क्रांतिकारी शहीदों में अमर है। दामोदर हरी चापेकर और उनके दोनों भाई बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर भी भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गये हैं। ये तीनों भाई बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे। और तीनों भाइयों को संयुक्त रूप से 'चापेकर बन्धु' नाम से प्रसिद्ध थे।

चाफेकर बंधु महाराष्ट्र के पुणे के पास चिंचवड़ नामक गाँव के निवासी थे। दामोदर पंत चाफेकर का जन्म 25 जून 1869 को पुणे के ग्राम चिंचवड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चाफेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। उनके दो छोटे भाई क्रमशः बालकृष्ण चाफेकर एवं वसुदेव चाफेकर थे। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर पंत के मन में थी। विरासत में कीर्तनकार का यश-ज्ञान मिला ही था। महर्षि पटवर्धन एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे। जिन्होने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया। 

ये तीनों भाई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सम्पर्क में थे। तीनों भाई तिलक जी को गुरुवत्‌ सम्मान देते थे।

तिलक जी की प्रेरणा से उन्होंने युवकों का एक संगठन व्यायाम मंडल तैयार किया। ब्रितानिया हुकूमत के प्रति उनके मन में बाल्यकाल से ही तिरस्कार का भाव था। दामोदर पंत ने ही बंबई में रानी विक्टोरिया के पुतले पर तारकोल पोत कर, गले में जूतों की माला पहना कर अपना रोष प्रकट किया था। 1894 से चाफेकर बंधुओं ने पूना में प्रति वर्ष शिवाजी एवं गणपति समारोह का आयोजन प्रारंभ कर दिया था। इन समारोहों में चाफेकर बंधु शिवाजी श्लोक एवं गणपति श्लोक का पाठ करते थे।

सन्‌ 1897 में पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था। इस स्थिति में भी अंग्रेज अधिकारी जनता को अपमानित तथा उत्पीड़ित करते रहते थे। वाल्टर चार्ल्स रैण्ड तथा आयर्स्ट-ये दोनों अंग्रेज अधिकारी लोगों को जबरन पुणे से निकाल रहे थे। जब 22 जून 1897 को पुणे के "गवर्नमेन्ट हाउस' में महारानी विक्टोरिया की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर राज्यारोहण की हीरक जयन्ती मनायी जाने वाली थी। इसमें वाल्टर चार्ल्स रैण्ड और आयर्स्ट भी शामिल हुए। दामोदर हरि चाफेकर और उनके भाई बालकृष्ण हरि चाफेकर भी एक दोस्त विनायक रानडे के साथ वहां पहुंच गए।और अपनी-अपनी बग्घी पर सवार होकर चल पड़े। योजना के अनुसार दामोदर हरि चाफेकर रैण्ड की बग्घी के पीछे चढ़ गया और उसे गोली मार दी, श् उधर बालकृष्ण हरि चाफेकर ने भी आर्यस्ट पर गोली चला दी। आयर्स्ट तो तुरन्त मर गया, किन्तु रैण्ड तीन दिन बाद अस्पताल में चल बसा। पुणे की उत्पीड़ित जनता चाफेकर-बन्धुओं की जय-जयकार कर उठी। गुप्तचर अधीक्षक ब्रुइन ने घोषणा की कि इन फरार लोगों को गिरफ्तार कराने वाले को 20 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।इन दोनों ने पुरस्कार के लोभ में आकर अधीक्षक ब्रुइन को चाफेकर बन्धुओं का सुराग दे दिया। इसके बादश् दामोदर हरि चाफेकर पकड़ लिए गए, पर बालकृष्ण हरि चाफेकर पुलिस के हाथ न लगे। सत्र न्यायाधीश ने दामोदर हरि चाफेकर को फांसी की सजा दी। 18 अप्रैल 1898 को प्रात: वही "गीता' पढ़ते हुए। दामोदर हरि चाफेकर फांसीघर पहुंचे और फांसी के तख्ते पर लटक गए।

उधर बालकृष्ण चाफेकर ने जब यह सुना कि उसको गिरफ्तार न कर पाने से पुलिस उसके सगे-सम्बंधियों को सता रही है तो वह स्वयं पुलिस थाने में उपस्थित हो गए।वह 9 फरवरी 1899 की रात थी। तदनन्तर वासुदेव चाफेकर को 8 मई को और बालकृष्ण चाफेकर को 12 मई 1899 को यरवदा कारागृह में फांसी दे दी गई। बालकृष्ण चाफेकर सन्‌ 1873 में और वासुदेव चाफेकर सन्‌ 1880 में जन्मे थे। इनके साथी क्रांतिवीर गोविन्द विनायक रानडे को 10 मई 1899 को यरवदा कारागृह में ही फांसी दी गई। तिलक जी द्वारा प्रवर्तित "शिवाजी महोत्सव' तथा "गणपति-महोत्सव' ने इन चारों युवकों को देश के लिए कुछ कर गुजरने हेतु क्रांति-पथ का पथिक बनाया था। इस प्रकार अपने जीवन-दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कभी कोई प्रतिदान की चाह नहीं रखी।

 

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