जीवटराम भगवानदास कृपलानी का जीवन परिचय | J. B. Kripalani ka jeevan parichay | आचार्य कृपलानी की लघु जीवनी हिंदी में |
जीवटराम भगवानदास कृपलानी का जीवन परिचय | J. B. Kripalani ka jeevan parichay | आचार्य कृपलानी की लघु जीवनी हिंदी में |
नाम: जीवटराम भगवानदास कृपलानी
उपनाम: आचार्य कृपालानी
जन्म: 11 नवम्बर 1888 ई.
स्थान: हैदराबाद, ब्रिटिश भारत
मृत्यु: 19 मार्च 1982 ई.
स्थान: अहमदाबाद, भारत
पत्नी: सुचेता कृपलानी
शिक्षा: स्नातक, एम.ए (अर्थशास्त्र),
विद्यालय: फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे
पेशा: राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी,
पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, प्रजा सोसलिस्ट पार्टी,
आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
स्थापित संगठन: किसान मजदूर प्रजा पार्टी
जीवटराम भगवानदास कृपलानी का जीवन परिचय |
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, गांधीवादी समाजवादी, पर्यावरणवादी तथा राजनेता, जीवटराम भगवानदास कृपलानी या जे.बी. कृपालानी जिन्हें सम्मान से आचार्य कृपलानी कहा जाता था।
इनका जन्म 1888 में सिंध के हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता जी एक राजस्व और न्यायिक अधिकारी थे। जे.बी कृपलानी की प्रारम्भिक शिक्षा सिंध से पूरी करने के बाद उन्होने मुम्बई के विल्सन कॉलेज में प्रवेश लिया। उसके बाद वह कराची के डी जे सिंध कॉलेज चले गए। उसके बाद पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से 1908 में स्नातक हुए। आगे उन्होंने इतिहास और अर्थशास्त्र में एम.ए. उतीर्ण किया। जीवटराम बहुत अनुशासित तथा कुशाग्र बुद्धि के थे।
पढ़ाई पूरी के बाद कृपलानी ने 1912 से 1917 तक बिहार में "ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज मुजफ्फरपुर में अंग्रेजी और इतिहास के प्राध्यापक के रूप में अध्यापन किया। 1919 में उन्होंने थोड़े समय के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया। चंपारण सत्याग्रह के दौरान वे महात्मा गांधी के सम्पर्क में आये। 1920 से 1927 तक महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ के वे प्राधानाचार्य रहे। तभी से उन्हें आचार्य़ कृपलानी कहा जाता है। उन्होंने 1921 से होने वाले कांग्रेस के अधिकांश आन्दोलनों में हिस्सा लिया और अनेक बार जेल गये। कृपलानी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने और 1928 से 1929 में वे इसके महासचिव बने। 1936 में वे सुचेता कृपलानी के साथ विवाह सूत्र में बंध गए। सुचेता मजुमदार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में शिक्षक थीं। और उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी थी।
आचार्य कृपलानी ने 1934 से 1945 तक कांग्रेस के महासचिव के रूप मे सेवा की तथा भारत के संविधान के निर्माण में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी। सन् 1946 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
आचार्य कृपलानी भारत की अजादी के समय 1947 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुने गए। 1950 में काग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव हुए तो नेहरू ने आचार्य कृपलानी का समर्थन किया। दूसरी ओर पुरुषोत्तम दास टण्डन थे जिनका समर्थन पटेल कर रहे थे। इसमें पुरुषोत्तम दास टण्डन विजयी हुए। और 1951 में उन्होंने कांग्रेस को अपना इस्तीफा प्रवृत कर दिया। तथा अन्य लोगों के सहयोग से किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनायी। यह दल आगे चलकर प्रजा समाजवादी पार्टी में विलीन हो गया।
भारत-चीन युद्ध के ठीक बाद, अगस्त 1963 में आचार्य कृपलानी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाए जो लोकसभा में लाया गया पहला अविश्वास प्रस्ताव था। कुछ दिनों बाद उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर स्वतंत्र नेता के रूप में कार्य किया।
सन 1972 से 1973 में आचार्य कृपलानी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी की बढ़ती हुई सत्तावादी नीति के विरुद्ध अनशन किया। जब आपातकाल लागू हुआ तो अस्सी वर्ष से अधिक वृद्ध कृपलानी 26 जून 1976 की रात में गिरफ्तार होने वाले कुछ पहले नेताओं में से थे। 1977 की जनता सरकार उनके जीवनकाल में ही बनी।
19 मार्च 1982 को 93 वर्ष की आयु में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में उनका मृत्यु हो गया। इनकी आत्मकथा 'माय टाइम्स' उनके देहान्त के 22 वर्ष बाद 2004 में प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में उन्होने भारत को विभाजित करने की योजना को स्वीकार कर्ने के लिए अपने कांग्रेसी साथियों को दोषी ठहराया है
उनके जन्म की 101वीं जयन्ती के अवसर पर 11 नवम्बर 1989 को भारतीय डाक विभाग ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया।
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