झाला मान सिंह का जीवन परिचय | Jhala Manna ka jeevan parichay | झाला मन्ना की लघु जीवनी हिंदी में |


झाला मान सिंह का जीवन परिचय | झाला मन्ना का जीवन परिचय | झाला मन्ना की लघु जीवनी हिंदी में |

नाम : झाला मान सिंह 

जन्म: 15 मई 1542 ई.

मृत्यु : जून 1576 ई.

स्थान: हल्दीघाटी, भारत

पिता: राजराणा सुरतान सिंह झाला

माता: रानी सेमकंवेर

राजवंश: झाला राजवंश

👉झाला मान महाराणा प्रताप की सेना में थे और 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को शामिल किया गया था।

झाला मान सिंह का जीवन परिचय |

यह भी कहा जाता है कि राजाराणा झाला मान सिंह को बीड़ा झाला और झाला मन्ना के रूप में जाना जाता है। अपनी विरासत की तरह ही मेवाड़ के राणा की रक्षा करते थे। उनकी पिछली 7 उपलब्धियों ने अपनी मातृभूमि मेवाड़ के लिए प्राणों का बलिदान दिया था। झाला मान सिंह 'बड़ी साढी' शहर के राजराणा थे। और हल्दीघाटी में शहीद हुए थे। झाला मान सिंह ने महाराणा प्रताप का शाही प्रतीक चिन्ह पहना और प्रताप की जान बचाई। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान उन्होंने मुगल सेना के बड़े हिस्से को गोगुंडा के बाहरी इलाके की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। 1576 में हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के प्राणों के रक्षक बने थे। झाला मानसिंह वे बड़ी सादड़ी के एक राजपूत वंश के मेवाड़ रईसों में से एक थे।

18 जून 1576, अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। महाभारत के युद्ध की तरह ही भयानक और विशाल था। हल्दी घाटी के इस भीषण और महाप्रलयकारी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने अकबर के सेनापति मानसिंह पर हमला किया, तब उनके भाले के एक ही। युद्ध से राजा मानसिंह का महावत मारा गया। महाराणा प्रताप के सिर पर मेवाड़ का राजमुकुट था। कई मुगल सैनिक उसी को घेरकर युद्ध कर रहे थे। मानसिंह पर हमला करते समय चेतक के घायल होने से मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप के चारों ओर घेरा डालना शुरू कर दिया। और धीरे-धीरे महाराणा प्रताप संकट की स्थिति में फसने लगे। उसी समय की स्थिति को परख कर महाराणा प्रताप के स्वामीभक्त परमप्रतापी सरदार झालामान सिंह अपनी स्वामीभक्ति का प्रमाण देते हुए। आगे बड़े और महाराणा प्रताप के सर से राज चिह्न और मुकुट लेकर अपने सर पर धारण कर लिया और महाराणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से निकल जाने को कहा। झाला मन्ना की चाल कामयाब रही और दुश्मनों ने झाला मन्ना को ही महाराणा प्रताप समझ लिया और उन पर आक्रमण करने के लिए टूट पड़े भीषण युद्ध हुआ लेकिन अंत में हुआ वहीं जो होना था भीषण युद्ध करते हुए झाला मन्ना वीरगति को प्राप्त हुए। वीरगति को प्राप्त होने से पहले ही झाला मन्ना मुगल सेना को पूर्व की ओर पीछे धकेल चुके थे।

इसी बलिदान के कारण महाराणा प्रताप ने बाद में मेवाड़ को पुनः मुक्त कराया, इस प्रकार झाला मन्ना ने अपने स्वामी का शीश बचाने के लिए अपना शीश काट दिया, उनके इस बलिदान की गाथा सदियों तक दोहराई जाएगी। 

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