टंट्या भील निषाद का जीवन परिचय | Tantia Bhil ka jeevan parichay | टंट्या भील की लघु जीवनी हिंदी में |
टंट्या भील निषाद का जीवन परिचय | Tantia Bhil ka jeevan parichay | टंट्या भील की लघु जीवनी हिंदी में |
पूरा नाम: टांटिया भील
नाम: टंट्या भील
जन्म: 26 जनवरी 1842 ई.
स्थान: पंधाना, खंडवा, भारत
मृत्यु: 4 दिसंबर 1889 ई.
स्थान: जबलपुर, भारत
मृत्यु का कारण: फांसी
समाधि स्थल: पातालपानी, मध्य प्रदेश
पिता: भाऊ सिंह भील
👉तांत्या भील 1878 और 1889 के बीच ब्रिटिश भारत में सक्रिय एक डकैत था।
👉उनका असली नाम तांतिया था।
टंट्या भील का जीवन परिचय |
टंट्या भील (निषाद) 1878 से 1889 के बीच भारत में सक्रिय एक निषादवंशी क्रान्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। द न्यूयॉर्क टाइम्स मे 10 नवंबर 1889 में प्रकाशित खबर में टंट्या भील को 'रॉबिनहुड ऑफ इंडिया' की पदवी से नवाजा गया था।
टंट्या भील आदिवासी समुदाय के सदस्य थे उनका वास्तविक नाम टंड्रा था। स्वतंत्रता सेनानियों को हमेशा से ही सत्ता द्वारा विद्रोही कहा जाता रहा है। चाहे वह औरंगजेब का मुगल साम्राज्य हो या ब्रिटिश शासन, टंट्या भील उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे। टंट्या भील से सरकारी अफसर या धनिक लोग ही भयभीत थे। आम जनता उसे 'टंटिया मामा' कहकर उसका आदर करती थी । टंट्या भील का जन्म मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा में 26 जनवरी 1842 में हुआ था।
उन्होंने 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों द्वारा किये गए दमन के बाद अपने जीवन के तरीके को अपनाया। टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास "खराब आजीविका" के लिए गिरफ्तार किया गया था। एक साल की सजा काटने के बाद उनके जुर्म को चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में बदल दिया गया। सन 1878 में दूसरी बार उन्हें हाजी नसरुल्ला खान यूसुफजई द्वारा गिरफ्तार किया गया था। मात्र तीन दिनों बाद वे खंडवा जेल से भाग गए और एक विद्रोही के रूप में शेष जीवन जिया। अंग्रेजों को सबक सिखाना चाहते थे। और समाजवादी समाज के भीलों के सपने को साकार करना चाहते थे। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने का जुनून उनमें कूट-कूट कर भरा था। उन्होंने कई बार जेल तोड़ी।
उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य की पुलिस को कई वर्षों तक परेशान किया और उन्हें चकमा दिया। टंट्या की मदद करने के आरोप में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया और सैकड़ों को जेल में डाल दिया गया। अंततः टंट्या को अपनी बहन के पति गणपत के विश्वासघात के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें इंदौर में ब्रिटिश रेजीडेंसी क्षेत्र में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया। बाद में उन्हें सख्त पुलिस पहरे में जुबुलपुर ले जाया गया । उन्हें भारी जंजीरों में जकड़ कर जुबुलपुर जेल में रखा गया, जहाँ अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें अमानवीय यातनाएँ दीं। उन पर हर तरह के अत्याचार किए गए। 19 अक्टूबर 1889 को जुबुलपुर के सत्र न्यायालय ने उन्हें मृत्यु तक फांसी की सजा सुनाई। और 4 दिसंबर 1889 को उसे फाँसी दे दी गई।
ब्रिटिश सरकार को भील विद्रोह भड़कने का डर था। आम तौर पर माना जाता है कि उन्हें फांसी पर लटकाने के बाद उनके शव को इंदौर के पास खंडवा रेल मार्ग पर पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया गया था। जिस स्थान पर उनकी लकड़ी की प्रतिमाएं रखी गई थीं, उसे टंट्या मामा की समाधि माना जाता है। आज भी सभी ट्रेन चालक टंट्या मामा के सम्मान में कुछ पल के लिए ट्रेन रोक देते हैं।
टंट्या भील की गिरफ्तारी की खबर न्यूयॉर्क टाइम्स के 10 नवंबर 1889 के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। इस खबर में उन्हें "भारत का रॉबिन हुड" बताया गया था।
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