ठाकुर कुशाल सिंह का जीवन परिचय | Thakur Kushal Singh ka jeevan parichay | ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की लघु जीवनी हिंदी में |


ठाकुर कुशाल सिंह का जीवन परिचय | Thakur Kushal Singh ka jeevan parichay | ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की लघु जीवनी हिंदी में |

नाम: ठाकुर कुशाल सिंह

जन्म: आउवा, जोधपुर राज्य

मृत्यु: 1864 ई. मेवाड़ 

आंदोलन: 1857 का भारतीय विद्रोह

प्रसिद्ध: स्वतंत्रता सेनानी

ठाकुर कुशाल सिंह का जीवन परिचय |

कुशाल सिंह चंपावत राठौड़ जिन्हें खुशाल सिंह चंपावत के नाम से भी जाना जाता है। ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत का जन्म आउवा, जोधपुर राज्य के 19वी शताब्दी के क्रांतिकारियों में से एक थे। राजस्थान की जोधपुर रियासत जिसे मारवाड़ भी कहा जाता है। इसमें आठ ठिकाने थे जिनमें एक आउवा भी था। ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत पाली जिले के इसी आउवा के ठाकुर थे। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, उन्होंने बिठोडा और चेलावास की लड़ाई में ब्रिटिश सेना को हराया। स्वतंत्रता संग्राम में जोधपुर रियासत और ब्रिटिश सेना को पराजित कर मारवाड़ में आजादी की अलख जगा दी थी। ये स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के घनिष्ठ मित्र व सहयोगी थे।

जोधपुर के शासक तख्तसिंह के विरुद्ध वहाँ के जागीरदारों में घोर असंतोष व्याप्त था। इन विरोधियों का नेतृत्व आउवा का ठाकुर कुशाल सिंह कर रहा थे। 21 अगस्त 1857 को जोधपुर लीजियन को सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया। चूंकि कुशाल सिंह अंग्रेजों का विरोधी थे। अत: उसने इन विद्रोही को अपने साथ मिला लिया। इस पर कुशाल सिंह का सामना करने हेतु लिफ्टिनेट हीथकोट के नेतृत्व में जोधपुर की राजकीय फौज आई, जिसे कुशाल सिंह ने 8 सितम्बर, 1857 को आउवा के निकट परास्त किया। तत्पश्चात् जार्ज लारेन्स ने 18 सितम्बर 1857 को आउवा के किले पर आक्रमण किया। और विद्रोहियों को वहां से खदेड़ दिया। किन्तु विद्रोहियों के हाथों वह बुरी तरह पराजित हुआ। इसी जोधपुर का पोलिटिकल एजेन्ट कप्तान मोंक मेसन विद्रोहियों के हाथों मारा गया। इस पराजय का बदला लेने के लिए ब्रिगेडियर होम्स ने एक सेना के साथ प्रस्थान किया। और 20 जनवरी 1858 को उसने आउवा पर आक्रमण कर दिया। इस समय तक विद्रोही सैनिक दिल्ली में पहुँच चुके थे। तथा अंग्रोजों ने आसोप गूलर तथा आलणियावास की जागीरों पर अधिकार कर लिया था। जब कुशल सिंह को विजय की कोई उम्मीद नहीं रही तो उसने आउवा के किले का बार अपने छोटे भाई पृथ्वीसिंह को सौंप दिया। और वह सलुम्बर चला गया।15 दिन के संघर्ष के बाद अंग्रेजों ने आउवा पर अधिकार कर लिया।

 

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