वीणा दास का जीवन परिचय | Veena Das ka jeevan parichay | वीणा दास की लघु जीवनी हिंदी में |


वीणा दास का जीवन परिचय | Veena Das ka jeevan parichay | वीणा दास की लघु जीवनी हिंदी में |

नाम: वीणा दास

जन्म: 24 अगस्त 1911ई.

स्थान: कृष्णनगर, भारत

मृत्यु: 26 दिसम्बर 1986 ई.

स्थान: ऋषिकेश, उत्तराखंड

पिता: बेनी माधव दास

माता: सरला दास

शिक्षा: बेथ्यून कॉलेज, सेंट जॉन्स डायोसेसन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल,

प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी

पुस्तकें: बीना दास: एक संस्मरण

पुरस्कार: पद्म श्री पुरस्कार

जेल यात्रा:'भारत छोड़ो आन्दोलन' के समय बीना दास को तीन वर्ष के लिये नज़रबन्द कर लिया गया था।

👉1946 से 1951 तक बीना दास बंगाल विधान सभा की सदस्य रही थीं।

👉बीना दास ने पुण्याश्रम संस्था' की स्थापना की।

वीणा दास का जीवन परिचय | 

वीणा दास बंगाल की भारतीय क्रान्तिकारी और राष्ट्रवादी महिला थीं। 6 फरवरी 1932 को उन्होने कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक दीक्षान्त समारोह में अंग्रेज़ क्रिकेट कप्तान और बंगाली गर्वनर स्टनली जैक्शन की हत्या का प्रयास किया था। क्रान्तिकारी बीना दास का जन्म 24 अगस्त, 1911 को ब्रिटिश कालीन बंगाल के कृष्णानगर में हुआ था। उनके पिता बेनी माधव दास बहुत प्रसिद्ध अध्यापक थे। और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उनके छात्र रह चुके थे। बीना की माता सरला दास भी सार्वजनिक कार्यों में बहुत रुचि लेती थीं। और निराश्रित महिलाओं के लिए उन्होंने 'पुण्याश्रम' नामक संस्था भी बनाई थी। ब्रह्म समाज का अनुयायी यह परिवार शुरू से ही देशभक्ति से ओत-प्रोत था। बीणा दास सुप्रसिद्ध ब्रह्म समाजी शिक्षक वेणीमाधव दास और सामाजिक कार्यकर्त्ता सरला देवी की पुत्री थीं। वे सेंट जॉन डोसेसन गर्ल्स हायर सैकण्डरी स्कूल की छात्रा रहीं।

वीणा दास ने कलकत्ता के 'बैथुन कॉलेज' में पढ़ते हुए। 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय बीना ने कक्षा की कुछ अन्य छात्राओं के साथ अपने कॉलेज के फाटक पर धरना दिया। वे स्वयं सेवक के रूप में कांग्रेस अधिवेशन में भी सम्मिलित हुईं। इसके बाद वे 'युगांतर' दल के क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आईं। उन दिनों क्रान्तिकारियों का एक काम बड़े अंग्रेज़ अधिकारियों को गोली का निशाना बनाकर यह दिखाना था। कि भारत  के निवासी उनसे कितनी नफरत करते हैं। 6 फ़रवरी,  1932 को बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को दीक्षांत समारोह में उपाधियाँ बाँटनी थीं। बीना दास को बी.ए. की परीक्षा पूरी करके दीक्षांत समारोह में अपनी डिग्री लेनी थी। उन्होंने अपने साथियों से परामर्श करके तय किया। कि डिग्री लेते समय वे दीक्षांत भाषण देने वाले बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन को अपनी गोली का निशाना बनाएंगी।

6 जनवरी, 1932 को दीक्षांत समारोह में जैसे ही गवर्नर ने भाषण देने प्रारम्भ किया। बीना दास अपनी सीट पर से उठीं और तेज़ीसे गवर्नर के सामने जाकर रिवाल्वर से गोली चला दी। उन्हें अपनी ओर आता हुआ देखकर गवर्नर थोड़ा-सा असहज होकर यहाँ-वहाँ हिला, जिससे निशाना चूक गया और वह बच गया। बीना दास को वहीं पर पकड़ लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया। जिसकी सारी कार्यवाई एक ही दिन में पूरी करके बीना को नौ वर्ष की कड़ी क़ैद की सज़ा दे दी गई। 1939 में जल्दी रिहा होने के बाद दास ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता प्राप्त की। सन् 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। और पुनः 1942 से 1945 तक के लिए कारवास की सजा प्राप्त की। 1946 से 1947 में बंगाल प्रान्त विधान सभा और 1947 से 1951 तक पश्चिम बंगाल प्रान्त विधान सभा की सदस्या रहीं। सन् 1947 में उनका युगान्तर समूह के भारतीय स्वतन्त्रता कार्यकर्ता और अपने साथी ज्योतिश चन्द्र भौमिक से विवाह हो गया। अपने पति की मृत्यु के बाद वे कलकत्ता छोड़कर ऋषिकेश के एक छोटे-से आश्रम में जाकर एकान्त में रहने लगीं थीं। अपना गुज़ारा करने के लिए उन्होंने शिक्षिका के तौर पर काम किया। और सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को लेने से इंकार कर दिया। उनके पति के देहान्त के बाद उन्होंने  ऋषिकेश में एकान्त जीवन व्यतीत करना आरम्भ किया।

देश को आज़ादी दिलाने वाली और वीर क्रांतिकारियों में गिनी जाने वाली बीना दास का 26 दिसम्बर, 1986 ई. में ऋषिकेश में देहावसान हुआ। बीणा दास ने बंगाली में 'शृंखलझंकार' और 'पितृधन' नामक दो आत्मकथाएँ लिखीं।


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