नरहरि परीख का जीवन परिचय ।narahari pareekh ka jeevan parichay
नाम: नरहरि परीख
जन्म: 17 अक्टूबर 1891 ई.
स्थान: अहमदाबाद, गुजरात
मृत्यु: 15 जुलाई 1957 ई.
पत्नी: मनिबेन, बच्चे: वनमाला, मोहन
स्थान: स्वराज आश्रम बारदोली
पेशा: लेखक, कार्यकर्ता एवं समाज सुधारक
भाषा: गुजराती, राष्ट्रीयता: भारतीय
शिक्षा: स्नातक तथा क़ानून की डिग्री
प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी
जेल यात्रा: घरसाना के 'नमक सत्याग्रह' में सम्मिलित होने पर नरहरि पारिख को लाठियों से पीटा गया और तीन वर्ष की कैद की सज़ा हुई।
नरहरि परीख का जीवन परिचय।
नरहरि द्वारकादास परीख भारत के एक लेखक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजसुधारक थे। नरहरि परीख का जन्म 7 अक्टूबर, 1891 ईस्वी को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था। उनका परिवार कथलाल, खेड़ा जिले से था। उन्होंने अहमदाबाद में अध्ययन किया और 1906 में मैट्रिक उतीर्ण किया। 1911 में उन्होंने 'गुजरात कॉलेज' से इतिहास और अर्थशास्त्र में बी ए किया। तथा कला स्नातक और फिर मुम्बई से क़ानून की डिग्री प्राप्त की। 1913 में उन्होंने अपने मित्र महादेव देसाई के साथ वकालत आरम्भ की। वर्ष 1915 में जब महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ़्रीका से लौटकर भारत आये, तब महादेव देसाई तथा नरहरि पारिख उनसे मिलने पहुँचे और सदा के लिए उनके अनुयायी हो गए। 1916 में, उन्होंने अपना अभ्यास छोड़ दिया और महात्मा गांधी के साथ सामाजिक सुधार आंदोलनों और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
उन्होंने अस्पृश्यता, शराब और अशिक्षा के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने महिलाओं के लिए स्वतंत्रता, स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल और भारतीयों द्वारा संचालित स्कूलों के लिए भी काम किया। वे 1917 में जेल से छूटने पर नरहरि परीख 'साबरमती आश्रम' में काका कालेलकर, किशोरी लाल मशरूवाला आदि के साथ राष्ट्रीय शाला में अध्यापक का काम करने लगे। कुछ दिन तक आश्रम में रहने के बाद नरहरि चम्पारन पहुंचे, जहाँ गाँधीजी 'सत्याग्रह' करने वाले थे। वर्ष 1920 में जब 'गुजरात विद्यापीठ' की स्थापना हुई तो इन्हें आश्रम से वहाँ भेज दिया गया। 1928 में उन्होंने सरदार पटेल के साथ 'बारदोली सत्याग्रह' में भाग लिया। घरसाना के 'नमक सत्याग्रह' में सम्मिलित होने पर नरहरि परीख को लाठियों से पीटा गया और तीन वर्ष की कैद की सज़ा हुई।
1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने पर पारिख को 'बुनियादी शिक्षा बोर्ड' का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1940 में वे 'सेवाग्राम' के 'ग्राम सेवक विद्यालय' के प्राचार्य भी बनाये गए थे। वे कुछ वर्षों तक गांधी के सचिव रहे। उन्होंने नवजीवन ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था।
गांधी की मृत्यु के बाद, उनकी अस्थियों को साबरमती नदी में विसर्जित करने से पहले अहमदाबाद में उनकी हवेली में रखा गया था। उन्हें 1947 में पक्षाघात का दौरा पड़ा लेकिन वे बच गए। 15 जुलाई 1957 को पक्षाघात और हृदयगति रुकने के बाद बारदोली के स्वराज आश्रम में उनका निधन हो गया।
नरहरि परीख एक अच्छे लेखक के रूप में भी जाने जाते थे। उन्होंने किशोरी लाल मशरूवाला, महादेव देसाई और सरदार पटेल की जीवनियाँ लिखी थीं। 'महादेव भाई की डायरी' के संपादन का श्रेय भी उनको ही जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें