नरिमन प्रिंटर्स का जीवन परिचय | Nariman Printers ka jeevan parichay

 


नरीमान प्रिन्टर का जीवन परिचय | Nariman Printers ka jeevan parichay 


नरिमन प्रिंटर्स का जीवन परिचय।

नरीमन अदरबाद प्रिंटर  एक भारतीय शौकिया रेडियो ऑपरेटर थे। जिन्हें कांग्रेस रेडियो की स्थापना के लिए जाना जाता है । 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने के साथ ही अंग्रेजों ने नए लाइसेंस जारी करना बंद कर दिया। सभी शौकिया रेडियो संचालकों को लिखित आदेश भेजकर अपने प्रसारण उपकरण पुलिस को सौंपने के लिए कहा गया ताकि युद्ध में इनका इस्तेमाल संभव हो सके और साथ ही धुरी राष्ट्रों के सहयोगियों और जासूसों द्वारा स्टेशनों का चोरी-छिपे इस्तेमाल होने से भी रोका जा सके। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के जोर पकड़ने के साथ ही, 1940 में प्रिंटर ने गांधीवादी विरोध संगीत और बिना सेंसर की आर्थिक खबरें प्रसारित करने के लिए आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की । उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और उनके उपकरण जब्त कर लिए गए। अगस्त 1942 में, महात्मा गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के बाद , अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर शिकंजा कसना और मीडिया पर सेंसरशिप लगानी शुरू कर दी। मीडिया प्रतिबंधों से बचने के लिए, उषा मेहता के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने देश भर के जमीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं तक संदेश प्रसारित करने में मदद के लिए मुंबई स्थित शौकिया रेडियो संचालकों "बॉब" तन्ना VU2LK और प्रिंटर से संपर्क किया। इसे " कांग्रेस रेडियो " के नाम से जाना गया और 2 सितंबर 1942 से 7.12 मेगाहर्ट्ज पर प्रसारण शुरू हुआ। इस स्टेशन से जापानी कब्जे वाले बर्मा तक के रेडियो प्राप्त किए जा सकते थे । नवंबर 1942 तक, प्रिंटर पकड़ा गया और उसने अंग्रेजों की मदद करने का फैसला किया। 

पुलिस ने मामले की जांच पूरी की। मामला अदालत में पेश हुआ तो उसमें पांच लोगों के नाम थे। विशेष न्यायाधीश जस्टिस एनएस लोकुर की अदालत में सुनवाई हुई और 14 मई, 1943 को फ़ैसला आया। जज ने बाबूभाई ठक्कर, चंद्रकांत झावेरी और ऊषा मेहता को जेल की सज़ा सुनाई, लेकिन विट्ठलदास झावेरी और शिकागोराडियो कंपनी के नानक मोटवानी को सारे आरोपों से बरी कर दिया। न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, अफ़सोस की बात है कि मामले के सबसे प्रमुख किरदार नरीमन प्रिंटर को मैं सज़ा नहीं दे पा रहा हूं। सारा किया-धरा उसका था, लेकिन वह सरकारी गवाह बन गया। इस मंहगे रेडियो स्टेशन को चलाने के लिए पैसे कहां से आते थे। ये उस समय तक रहस्य बना रहा जब तक राममनोहर लोहिया गिरफ़्तार नही कर लिए गए। असल में ये पूरा रेडियो स्टेशन चंदे पर चलता था जो बंम्बई के अनाज विक्रेता, सूती कपड़े व्यापारी और ट्रेड असोसिएशन के लोग दिया करते थे।

नरीमान प्रिन्टर को उनके कॉल साइन VU2FU के लिए याद किया जाता है।


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