पंडित नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना का जीवन परिचय | Narendra Prasad Saxena ka jeevan parichay
पंडित नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना का जीवन परिचय | Narendra Prasad Saxena ka jeevan parichay
नाम : पंडित नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना
जन्म: 10 अप्रैल 1907 ई.
स्थान: हैदराबाद
मृत्यु: 24 सितंबर 1976 ई.
पिता: राय केशव प्रसाद
माता: गुणवंती
पंडित नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना का जीवन परिचय ।
पंडित नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना प्रसिद्ध आर्य समाजी थे। जिन्होने हैदराबाद की निजामशाही के विरुद्ध बहुत संघर्ष किया। वे 'पण्डित सोमानन्द सक्सेना' के नाम से प्रसिद्ध थे।
नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना का हैदराबाद नगर में 10 अप्रैल 1907 को सक्सेना कायस्थ परिवार में एक प्राणवीर का जन्म हुआ। आगे चलकर जिसने निरंकुश निज़ाम तथा रज़ाकारों को घुटने टेकने के लिए बाध्य किया। उस शिशु का नाम रखा गया नरेन्द्र प्रसाद सक्सेना। पिता राय केशव प्रसाद निज़ाम सरकार में मनसबदार थे। माता गुणवंती, राय बंसीधर की सुपुत्री थी। नरेन्द्र के मातापिता के वंशज उत्तर भारत से हैदराबाद आ गए थे।
पण्डित नेरन्द्र जी का बहुत सारा जीवन जेल में बीता उनका हर एक त्योहार जेल की चार दीवारी में बीता। पं नरेन्द्र की वाणी में जो धार थी। वह उनकी लेखनी में भी थी। उनके द्वारा संपादित ‘वैदिक आर्य आदर्श’ ने हैदराबाद के सोए हुए वातावरण को जगाया। जब निज़ाम ने इस पत्रिका पर प्रतिबंध लगाया, तब पण्डित नरेेन्द्र ने ‘आर्य गजट’लाहौर से निकाला।
जब आर्य समाज ने अपने सत्याग्रह समाप्त करने निज़ाम के सामने 14 शर्तें रखीं, तब निजाम ने 13 शर्तें तो मान ली। परंतु 14वीं शर्त अस्वीकार कर दी वह शर्त थी पण्डित नरेन्द्र की ‘मनानूर जेल’ से रिहाई। इतना भय था पण्डित नरेन्द्र का निज़ामशाही पर। आइए इस लौह पुरुष के बहुरंगी जीवन पर एक नजर डालें।
1940 में आर्य प्रतिनिधि सभा मध्य दक्षिण के मंत्री निर्वाचित हुए। 1944 में सर्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के उपप्रधान एवं ‘अंतर्राष्ट्रीय आर्यनलीग’ के उपाध्यक्ष बने। 1945 में निज़ाम राज्य के द्रोही ठहराए गए। इनके भाषण पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया तथा एक वर्ष के कारावास की सजा दी गई। 1946 में हैदराबाद स्टेट कांग्रेस के मंत्री बनाये गए। 1947 में एक बार फिर हैदराबाद सेंट्रल जेल में स्वामी रामानंद तीर्थ आदि नेताओं के साथ बंदी बनाए गए। 1948 में हैदराबाद मुक्ति के बाद आपको भी जेल से मुक्त किया गया।
1950 में आर्य प्रतिनिधि सभा मध्य दक्षिण के प्रधान निर्वाचित हुए। इसी वर्ष हैदराबाद जिला कांग्रेस कमेटी के भी अध्यक्ष हुए। आपने देश के प्रथम चुनाव में भाग लिया तथा 1952 में राज्य विधानसभा के सदस्य चुने गए। 1953में जब नानलनगर, हैदराबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन संपन्न हुआ। तो आप उसके स्वागत मंत्री बनाए गए। 1954 में अष्टम आर्य महासम्मेलन हैदराबाद के आप प्रमुख आयोजक थे। 1956 में आपने दक्षिण भारत में हिंदी की प्रथम संस्था प्राच्य महाविद्यालय की स्थापना की। 1957 में हिंदी रक्षा आंदोलन, पंजाब के संचालक नियुक्त हुए। 1962 में खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के मेम्बर सेक्रेटरी बनाए गए। 1964 में हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1968 में जब हैदराबाद में दशम आर्य महासम्मेलन संपन्न हुआ, तब पं नरेन्द्र उसके स्वागताध्यक्ष बनाए गए।
भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात भी निज़ाम राज्य के निरंकुश शासकों ने अपनी देशद्रोही गतिविधियां जारी रखी। नरेन्द्र ने कभी निज़ाम से माफी नहीं मांगी और अब निज़ाम पण्डित नरेन्द्र से माफी मांग रहे हैं। दुआ करने को कह रहे हैं। नरेन्द्र ने सदा सादा जीवन गुजारा। यदि चाहते तो अपने काया] के माध्यम से अपनी प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता के कारण ऐशओ आराम का जीवन व्यतीत कर सकते थे।
सोमानन्द सरस्वती के नाम ही से उन्होंने 24 सितंबर 1976 को अपना भौतिक शरीर त्याग दिया और अनंत में विलीन हो गए। उनके अंतिम शब्द थे।
अगलों को जमाना क्या देगा, अपनी तो कहानी खत्म हुई। वह आवाज जिसने हजारों, लाखों इंसानों में नए जोश तथा जाति भक्ति का संचार किया, वह आवाज जिसने निज़ामशाही को ललकारा, जिसने रज़ाकारों के अत्याचारों के खिलाफ बुलंद हुई, वह आवाज जिसने युवाप़ीढी को साहस एवं संघर्ष के मार्ग पर चलने का आह्वान दिया, वह आवाज 24 सितंबर 1976 को सदासदा के लिए खामोश हो गयी।
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