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तुर्रेबाज़ खान का जीवन परिचय | Turrebaz Khan ka jeevan parichay | तुर्रेबाज़ खान की लघु जीवनी हिंदी में |

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तुर्रेबाज़ खान का जीवन परिचय | Turrebaz Khan ka jeevan parichay | तुर्रेबाज़ खान की लघु जीवनी हिंदी में | नाम: तुर्रेबाज़ खान जन्म: बेगम बाज़ार, हैदराबाद, भारत मृत्यु: 1857 ई. हैदराबाद, भारत प्रसिद्ध: हैदराबाद में 1857 के भारतीय विद्रोह का नेतृत्व करना। तुर्रेबाज़ खान का जीवन परिचय | तुर्रेबाज़ खान एक भारतीय क्रांतिकारी है। जो 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान  हैदराबाद राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर श्हीद हो गये। तुर्रेबाज़ खान का जन्म वर्तमान  हैदराबाद जिले के बेगम बाज़ार में हुआ था। तुर्रम खां का असली नाम तुर्रेबाज़ खान था। उन्होंने सत्तारूढ़ निज़ाम के विरोध के बावजूद अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह किया। बेगम बाज़ार में उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखा गया है। तुर्रेबाज़ खान दक्कन के इतिहास में एक वीरतापूर्ण व्यक्ति थे। जो अपने साहस के लिए जाना जाता थे। वह एक क्रांतिकारी व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। सन 1857 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के दौरान, इस...

तात्या टोपे का जीवन परिचय | Tatya Tope ka jeevan parichay | तात्या टोपे की लघु जीवनी हिंदी में |

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तात्या टोपे का जीवन परिचय | Tatya Tope ka jeevan parichay | तात्या टोपे की लघु जीवनी हिंदी में | पूरानाम: रामचंद्र पांडुरंग टोपे नाम: तात्या टोपे उपनाम: बुंदेलखंड का शेर जन्म: 16 फरवरी 1814 ई. स्थान: नाशिक, महाराष्ट्र, भारत मृत्यु: 18 अप्रैल 1859 ई. स्थान: शिवपुरी, मध्य प्रदेश, भारत मृत्यु का कारण: फाँसी द्वारा मृत्युदंड पिता: पांडुरंग रावभट्ट़ माता: रुखमा बाई  प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी आन्दोलन: प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 👉पेशवा की सेना का जनरल 1856 से 6 दिसम्बर 1857 तक। 👉तात्या टोपे ने 'पढ़ो और फिर लड़ो' का नारा दिया था। 👉भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा नाना साहब का प्रमुख योगदान था। तात्या टोपे का जीवन परिचय। तात्या टोपे 1857 के भारतीय विद्रोह में एक उल्लेखनीय कमांडर थे। तात्या का जन्म 16 फरवरी 1814 में महाराष्ट्र में नाशिक के निकट येवला नामक गाँव में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव ...

तरुण राम फुकन का जीवन परिचय | Tarun Ram Phukan ka jeevan parichay | तरुण राम फुकन की लघु जीवनी हिंदी में |

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तरुण राम फुकन का जीवन परिचय | Tarun Ram Phukan ka jeevan parichay | तरुण राम फुकन की लघु जीवनी हिंदी में | नाम: तरुण राम फुकन जन्म: 22 जनवरी 1877 ई. मृत्यु: 28 जुलाई 1939 ई. स्थान: गुवाहाटी, भारत शिक्षा: वकालत विद्यालय: प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय कोलकाता, 👉1921 में गांधी जी की असम प्रदेश यात्रा में वे पूरे समय उनके साथ रहे थे। 👉भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए तरुण राय ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया। तरुण राम फुकन का जीवन परिचय | तरुण राम फुकन जिन्हें फूकुन भी कहा जाता है। असम के एक प्रमुख नेता एवं भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी थे जो 'देशभक्त' के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। तरुण राम फुकन का जन्म 1877 में असम के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने कॉटन कॉलेजिएट स्कूल, गुवाहाटी और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से शिक्षा प्राप्त की। बाद में, वे 1901 में लंदन के इनर टेम्पल से बार में चले गए । उन्होंने एक वकील के रूप में शिक्षा प्राप्त की।लेकिन गुवाहाटी में अर्ल लॉ कॉलेज में व्याख्याता के रूप में भी का...

ठाकुरदास बंग का जीवन परिचय | Thakurdas Bang ka jeevan parichay | ठाकुरदास बंग की लघु जीवनी हिंदी में |

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ठाकुरदास बंग का जीवन परिचय | Thakurdas Bang ka jeevan parichay | ठाकुरदास बंग की लघु जीवनी हिंदी में | नाम: ठाकुरदास बंग जन्म: 1917 ई. महाराष्ट्र, भारत मृत्यु: 27 जनवरी 2013 ई. स्थान: वर्धा, भारत ठाकुरदास बंग का जीवन परिचय | ठाकुरदास बंग गांधीवादी दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री थे। उन्होने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई थी। वे खादी तथा सर्वोदय आन्दोलनों में सक्रिय रहे। ठाकुरदास बंग का जन्म 1917 में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के गनोरी गांव में हुआ था। और वे महात्मा गांधी के एक सहयोगी द्वारा शुरू किए गए कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए। वे वर्धा जिले में रहते थे। जो गांधी के आश्रम सेवाग्राम से कुछ मील दूर था। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने इसे भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए छात्रों को तैयार करने का अपना सबसे बड़ा अवसर माना। अमेरिका में अर्थशास्त्री के रूप में अपना करियर बनाने का फैसला करने पर, बंग महात्मा गांधी से आशीर्वाद लेना चाहते थे। आश्रम में आने का कारण बत...

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जीवन परिचय |Thakur Pyarelal Singh ka jeevan parichay | ठाकुर प्यारेलाल की लघु जीवनी हिंदी में |

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ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जीवन परिचय |Thakur Pyarelal Singh ka jeevan parichay | ठाकुर प्यारेलाल की लघु जीवनी हिंदी में | नाम: ठाकुर प्यारेलाल सिंह जन्म: 21 दिसम्बर 1891 ई. मृत्यु: 20 अक्टूबर 1954 ई. स्थान: राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ पिता: दीनदयाल सिंह  माता: नर्मदा देवी शिक्षा: बी.ए. तथा विधि स्नातक पार्टी: किसान मजदूर प्रजा पार्टी  प्रसिद्धि: राष्ट्रीय नेता तथा श्रमिक आन्दोलन के सूत्रधार आंदोलन: आपके नेतृत्व में राजनांदगांव में श्रमिक आन्दोलन, 'छात्र आन्दोलन', 'स्वदेशी आन्दोलन' तथा 'अत्याचारी दीवान हटाओ आन्दोलन' चलते रहे। 👉ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में 1919 में मज़दूरों ने देश की सबसे पहली और लम्बी हड़ताल की थी। 👉1936 से 1947 तक ठाकुर साहब रायपुर नगरपालिका के लगातार तीन बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। जो स्वयंमेव एक रिकार्ड है। वे 'छत्तीसगढ़ एजूकेशनल सोसाइटी' के संस्थापक अध्यक्ष थे। ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जीवन परिचय | ठाकुर प्यारेलाल सिंह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और छत्तीसगढ़ में मजदूर आंदो...

ठाकुर कुशाल सिंह का जीवन परिचय | Thakur Kushal Singh ka jeevan parichay | ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की लघु जीवनी हिंदी में |

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ठाकुर कुशाल सिंह का जीवन परिचय | Thakur Kushal Singh ka jeevan parichay | ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की लघु जीवनी हिंदी में | नाम: ठाकुर कुशाल सिंह जन्म: आउवा, जोधपुर राज्य मृत्यु: 1864 ई. मेवाड़  आंदोलन: 1857 का भारतीय विद्रोह प्रसिद्ध: स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर कुशाल सिंह का जीवन परिचय | कुशाल सिंह चंपावत राठौड़ जिन्हें खुशाल सिंह चंपावत के नाम से भी जाना जाता है। ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत का जन्म आउवा, जोधपुर राज्य के 19वी शताब्दी के क्रांतिकारियों में से एक थे। राजस्थान की जोधपुर रियासत जिसे मारवाड़ भी कहा जाता है। इसमें आठ ठिकाने थे जिनमें एक आउवा भी था। ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत पाली जिले के इसी आउवा के ठाकुर थे। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, उन्होंने बिठोडा और चेलावास की लड़ाई में ब्रिटिश सेना को हराया। स्वतंत्रता संग्राम में जोधपुर रियासत और ब्रिटिश सेना को पराजित कर मारवाड़ में आजादी की अलख जगा दी थी। ये स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के घनिष्ठ मित्र व सहयोगी थे। जोधपुर के शासक तख्तसिंह के विरुद्ध वहाँ के जागीरदारों में घोर ...

प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, सत्य साईं बाबा का जीवन परिचय | Satya Sai ka jeevan parichay | सत्य साईं की लघु जीवनी हिंदी में |

प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, सत्य साईं बाबा का जीवन परिचय | Satya Sai ka jeevan parichay | सत्य साईं की लघु जीवनी हिंदी में | पुरानाम: सत्यनारायण राजू नाम: सत्य साईं बाबा जन्म: 23 नवम्बर 1926 ई. मृत्यु: 24 अप्रैल 2011 ई. स्थान: पुट्टपर्थी, आन्ध्र प्रदेश, भारत पिता: पेड्डावेंकामा राजू रत्नाकरम माता: ईश्वरम्मा धर्म: हिन्दू संप्रदाय: सत्य साईं बाबा आंदोलन संस्थापक: श्री सत्य साईं अंतर्राष्ट्रीय संगठन, श्री सत्य साईं केंद्रीय ट्रस्ट कथन: सबसे प्यार करो, सबकी सेवा करो, हमेशा मदद करो, कभी दुःख न दो 👉सत्य साईं बाबा को प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु शिरडी के साईं बाबा का अवतार माना जाता है 👉1950 में एक विशाल आश्रम बनाया गया जो ‘प्रशांति निलयम’ के तौर पर उनका स्थाई केंद्र बन गया। 👉1972 में, सत्य साईं बाबा ने श्री सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट की स्थापना की। 👉सत्य साईं बाबा ने 15 पुस्तकें लिखीं, जिन्हें "वाहिनी" के नाम से जाना जाता है। 👉1968 में उन्होंने मुंबई में धर्मक्षेत्र या सत्यम मंदिर की स्थापना की । 1973 में उन्होंने हैदराबाद में शिवम मंदिर की स्थापना की। 19 जनवरी...

टीपू सुल्तान का जीवन परिचय | Tipu Sultan ka jeevan parichay | टीपू सुल्तान की लघु जीवनी हिंदी में |

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टीपू सुल्तान का जीवन परिचय | Tipu Sultan ka jeevan parichay | टीपू सुल्तान की लघु जीवनी हिंदी में |  पूरानाम: सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू नाम: टीपू सुल्तान जन्म: नवंबर 1750 ई. स्थान: देवनहल्ली, भारत मृत्यु: 4 मई, 1799 ई. स्थान: श्रीरंगपट्टनम, कर्नाटक पिता: हैदर अली  माता: फातिमा फख्र-उन-निसा पत्नी: बुरांती बेगम, रोशनि बेगम,सुल्तान बेगम, आदि। धर्म: इस्लाम युद्ध: मैसूर युद्ध राज्याभिषेक: 29 दिसम्बर 1782 शासन: मैसूर साम्राज्य के शासक 10 दिसंबर 1782 से 4 मई 1799 तक। प्रसिद्ध: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बहादुर और कटु विरोध के लिए। टीपू सुल्तान का जीवन परिचय | टीपू सुल्तान जिन्हें आमतौर पर शेर-ए-मैसूर या "मैसूर का शेर" कहा जाता है। टीपू सुल्तान को भारतीय इतिहास की प्रमुख हस्तियों में से एक माना जाता है। टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनहल्ली में हुआ था। वह सैन्य अधिकारी और बाद में मैसूर के वास्तविक शासक हैदर अली और फातिमा फख्र-उन-निसा के पुत्र थे। टीपू सुल्तान एक शक्तिशाली योद्धा और विद्वान शासक थे। टीपू सुल्ता...

टंट्या भील निषाद का जीवन परिचय | Tantia Bhil ka jeevan parichay | टंट्या भील की लघु जीवनी हिंदी में |

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टंट्या भील निषाद का जीवन परिचय | Tantia Bhil ka jeevan parichay | टंट्या भील की लघु जीवनी हिंदी में |  पूरा नाम: टांटिया भील नाम: टंट्या भील जन्म: 26 जनवरी 1842 ई. स्थान: पंधाना, खंडवा, भारत मृत्यु: 4 दिसंबर 1889 ई. स्थान: जबलपुर, भारत मृत्यु का कारण: फांसी समाधि स्थल: पातालपानी, मध्य प्रदेश पिता: भाऊ सिंह भील 👉तांत्या भील 1878 और 1889 के बीच ब्रिटिश भारत में सक्रिय एक डकैत था। 👉उनका असली नाम तांतिया था। टंट्या भील का जीवन परिचय | टंट्या भील (निषाद) 1878 से 1889 के बीच भारत में सक्रिय एक निषादवंशी क्रान्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। द न्यूयॉर्क टाइम्स मे 10 नवंबर 1889 में प्रकाशित खबर में टंट्या भील को 'रॉबिनहुड ऑफ इंडिया' की पदवी से नवाजा गया था।  टंट्या भील आदिवासी समुदाय के सदस्य थे उनका वास्तविक नाम टंड्रा था। स्वतंत्रता सेनानियों को हमेशा से ही सत्ता द्वारा विद्रोही कहा जाता रहा है। चाहे वह  औरंगजेब का मुगल साम्राज्य हो या ब्रिटिश शासन, टंट्या भील उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे। टंट्या भील से सरकारी अफसर या धनिक लोग ह...

झाला मान सिंह का जीवन परिचय | Jhala Manna ka jeevan parichay | झाला मन्ना की लघु जीवनी हिंदी में |

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झाला मान सिंह का जीवन परिचय | झाला मन्ना का जीवन परिचय | झाला मन्ना की लघु जीवनी हिंदी में | नाम : झाला मान सिंह  जन्म: 15 मई 1542 ई. मृत्यु : जून 1576 ई. स्थान: हल्दीघाटी, भारत पिता: राजराणा सुरतान सिंह झाला माता: रानी सेमकंवेर राजवंश: झाला राजवंश 👉झाला मान महाराणा प्रताप की सेना में थे और 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को शामिल किया गया था। झाला मान सिंह का जीवन परिचय | यह भी कहा जाता है कि राजाराणा झाला मान सिंह को बीड़ा झाला और झाला मन्ना के रूप में जाना जाता है। अपनी विरासत की तरह ही मेवाड़ के राणा की रक्षा करते थे। उनकी पिछली 7 उपलब्धियों ने अपनी मातृभूमि मेवाड़ के लिए प्राणों का बलिदान दिया था। झाला मान सिंह 'बड़ी साढी' शहर के राजराणा थे। और हल्दीघाटी में शहीद हुए थे। झाला मान सिंह ने महाराणा प्रताप का शाही प्रतीक चिन्ह पहना और प्रताप की जान बचाई। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान उन्होंने मुगल सेना के बड़े हिस्से को गोगुंडा के बाहरी इलाके की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। 1576 में हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के प्राणों के रक्षक बने थे। झाला मानसिंह ...